अंगारे
मनहरण घनाक्षरी
**** अंगारे *****
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अंगारे बड़े गर्म है,
पैर बहुत नर्म है।
चलना हर हाल में,
विजय की चाह है।।
काँटों भरी डगर है,
न अगर मगर है।
कफ़न सिर बांधा है,
जीत की ही राह है।।
जंग की ललकार है,
रुत चाहे मल्हार है।
कदम पीछे न हटें,
किसे परवाह है।।
सिंह जैसी दहाड़ है,
आगे चाहे पहाड़ है।
मनसीरत ने ठाना,
दुश्मन तबाह है।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)