अँधेरा
उजास ,प्रकाश , रौशनी
एक ही शब्द के पर्याय
तुम मानते अपने को श्रेष्ठ
मुझे कमतर आँकते
तुम्हारा अस्तित्व
मुझसे ही तो है
दीप की जलती वर्तिका
मुझसे ही तो प्राण पाती
उजाले में जल
क्या व्यक्त कर पाती स्वयं को…
अँधेरी रात में ही
चाँद फैलाता उजास
अँधकार सागर से तैर
सूर्य सर उठाता
ये चमकते हीरक कण से सितारे
अँधेरे की चादर पर ही तो
वजूद पाते
मेरे बिना
क्या व्यक्त कर पाते स्वयं को….
मीनाक्षी भटनागर नई दिल्ली
स्वरचित