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3 Dec 2017 · 1 min read

” ———–———————-अँखियाँ पल पल हरषे ” !!

ऐक झलक पाने को तरसे ,छिपे चाँद के जैसे !
गन्ध संदली कैसे भूलें , मधुवन को हम तरसे !!

हंसी दामिनी जैसी दमके , अलकें घटा सी छाइ !
छटा बिखेरो इंद्रधनुष सी , अँखियाँ पल पल हरषे !!

हंसी खनकती , छन छन करती , बाहर हम घायल हैं !
इसलिए तो यहां वहां है , तेरे मेरे चर्चे !!

मदमाती सी गन्ध उड़ी है , सम्मोहन जागा है !
रात दिवस भी यहां थमे है , पल पल लगे ठहरते !!

तेरा जलवा मिले देखने , उम्मीदें कायम हैं !
गलियां गलियां भटक रहे हैं , तेरे आज शहर के !!

नाज , अदाऐं पाली तुमने , गले लगी खुशहाली !
रुख़सारों की रंगत देखी , बढ़ गए भाव पहर के !!

बृज व्यास

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