■ सामयिक चिंतन

■ आज प्रसाद जी होते तो….!
【प्रणय प्रभात】
कालजयी कृति “कामायनी” के प्रणेता महान कवि श्रद्धेय श्री “जयशंकर प्रसाद” जी ने कभी कहा था-
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग-पग-तल में।
पीयूष श्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में।।”
प्रसाद जी यदि आज होते तो शायद कुछ यूँ लिखते-
“नारी तुम श्रद्धा हो कर भी, क्यों फँस जाती हो दलदल में?
टुकड़ों-टुकड़ों में बँट कर के, खोजी जाती हो जंगल मे।।’
【बात उनकी समझ मे आएगी जिनकी साहित्य व सामयिक संदर्भों पर पकड़ होगी। बाक़ी के लिए इस बार भी “काला अक्षर ————/】