■ आलेख / अनुभूत और अभोव्यक्त

■ भारत, भारतीयता और भाषा के वैश्विक संवाहक हमारे प्रवासी भारतीय
◆ बीती रात किया इस सच का अनुभव
【प्रणय प्रभात】
बीती रात क़रीब 9:00 बजे मोबाइल बजा। स्क्रीन पर एक अजीब और अंजान सा नम्बर आँखों के सामने था। कुछ क्षणों के लिए संशय हुआ। बावजूद इसके मन ने कोल रिसीव करने का संकेत दिया। दूसरी ओर से मेरा नाम लेकर पुष्टि की गई कि कॉल सही जगह लगा है या नहीं? मेरी स्वीकारोक्ति के बाद कॉल करने वाले सज्जन ने अपना परिचय रवि पांडेय के रूप में दिया। इस नाम से अपरिचित होने के कारण मैंने परिचय लेने का सहज प्रयास किया। इस के बाद मिले जवाब ने बरबस प्रसन्नता का आभास कराया। कॉल दरअसल #कनाडा से था। कॉल करने वाले सज्जन वहां से प्रकाशित #हिंदी_अब्रॉड के संपादक थे। जिसमे मेरी 2 या 3 रचनाएं विगत दिनों प्रकाशित हुईं। वस्तुतः कॉल मेरे ई-मेल के जवाब में आया था। जिसमे मैंने उक्त समाचार पत्र की लिंक चाही थी। जो मुझे अन्य पर निर्भरता के कारण नियमित रूप से उपलब्ध नहीं हो पा रहा था। ई-मेल का जवाब ई-मेल पर भी आ सकता था, पर हुआ वो जो कतई प्रत्याशित नहीं था। श्री पांडेय ने कुशल-क्षेम जानने के बाद मुझसे बेहद आत्मीय चर्चा की। श्योपुर की लोकेशन और इंदौर से दूरी के बारे में भी जाना। मैंने #कूनो_नेशनल_पार्क और #अफ्रीकन_टाइगर सहित #कोटा और #राजस्थान_बॉर्डर के हवाले से श्योपुर को रेखांकित किया। सुखद आश्चर्य हुआ कि उन्हें समझने में ज़रा भी देर नहीं लगी। मैंने उन्हें भावी यात्रा के दौरान श्योपुर प्रवास का आत्मीय आमंत्रण भी स्वाभाविक रूप से दिया। तन पता चला कि वे आगामी जनवरी-2023 में इंदौर आ रहे हैं। जहाँ प्रवासी भारतीय सम्मेलन का आयोजन पूर्व प्रस्तावित है। इस वार्तालाप पर विराम के तत्काल बाद मुझे मेल के जरिये वांछित लिंक भी मिल गई। सुखद पहलू यह जानना रहा कि आज #भारत एयर #भारतीयता के विश्व-पटल पर मायने क्या हैं। गर्व इस बात पर हुआ कि अपने देश मे एक शरणार्थी ठहराई जा रही #हिंदी की कीर्ति-पताका वैश्विक स्तर पर आज पूरे मान से फहरा रही है। संतोष इस बात का भी बहुत है कि साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में हमारी भाषा को हमारे प्रवासी परिवार संसार मे प्रतिष्ठा दिला रहे हैं और हमारी समृद्ध भाषा सशक्त संबंधों का माध्यम बन कर “विश्व-बंधुत्व” के भावों को साकार कर रही है। भारतीय धर्म, संस्कृति और साहित्य को वैश्विक क्षितिज पर चमकने का मिल रहा है। जिसमे समर्पित व संकल्पित प्रवासी भारतवंशियों की भूमिका स्तुत्य है। वतन से हज़ारों मील दूर होकर भी वतन से लगाव रखने वाले प्रवासी भारतीयों की अपनी जड़-मूल के प्रति आस्था व जुड़ाव की भावना निस्संदेह वंदनीय-अभिनंदनीय है। जो प्रत्येक भारतीय के लिए प्रसन्नता व आत्मगौरव का विषय होनी ही चाहिर। विशेष रूप से इस युग में, जिसमें हमे अपने परिजन और सम्बन्ध भार और बेगार प्रतीत होने लगे हैं। भारत, भारतीयता और भाषा के धुर समर्थक के रूप में अपनी अनुभूति को दबाए रखना असम्भव था। परिणति इस अभिव्यक्ति के रूप में हो रही है। कदाचित आपको भी अच्छी और सच्ची लगे मेरी बात। आग्रह इतना सा कि सभी देश की आर्थिक समृद्धि और कीर्ति के लिए सजग, सक्रिय व प्रतिबद्ध प्रवासी भाररतीयों के प्रति कृतज्ञता अवश्य प्रकट करें। जब भी अवसर मिले। शेष अशेष…!!