आज के समाज का यही दस्तूर है,
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
सोचता हूँ ऐ ज़िन्दगी तुझको
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मनवा मन की कब सुने, करता इच्छित काम ।
हर इक सैलाब से खुद को बचाकर
मैं अक्सर तन्हाई में......बेवफा उसे कह देता हूँ
हवलदार का करिया रंग (हास्य कविता)
कहानी- "खरीदी हुई औरत।" प्रतिभा सुमन शर्मा
जो लोग बिछड़ कर भी नहीं बिछड़ते,
यूं साया बनके चलते दिनों रात कृष्ण है
Behaviour of your relatives..
कोई नाराज़गी है तो बयाँ कीजिये हुजूर,
भुलाया ना जा सकेगा ये प्रेम
बुंदेली दोहा प्रतियोगिता-146 के चयनित दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
खुद निर्जल उपवास रख, करते जो जलदान।
I guess afterall, we don't search for people who are exactly
मधुशाला में लोग मदहोश नजर क्यों आते हैं