ज़िन्दगी का रंग उतरे

जैसे जैसे उम्र गुज़रे
ज़िन्दगी का रंग उतरे
सोचता रहता हूँ तन्हा
मुझमें भीतर कौन बिखरे
संग बहते आँसुओं में
खून के हैं चन्द कतरे
मन का पंछी चाहे उड़ना
पर दुखों ने पंख कुतरे
***
जैसे जैसे उम्र गुज़रे
ज़िन्दगी का रंग उतरे
सोचता रहता हूँ तन्हा
मुझमें भीतर कौन बिखरे
संग बहते आँसुओं में
खून के हैं चन्द कतरे
मन का पंछी चाहे उड़ना
पर दुखों ने पंख कुतरे
***