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31 Aug 2022 · 1 min read

ज़िन्दगी का रंग उतरे

जैसे जैसे उम्र गुज़रे
ज़िन्दगी का रंग उतरे

सोचता रहता हूँ तन्हा
मुझमें भीतर कौन बिखरे

संग बहते आँसुओं में
खून के हैं चन्द कतरे

मन का पंछी चाहे उड़ना
पर दुखों ने पंख कुतरे

***

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Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali

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