ज़िन्दगी का रंग उतरे
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जैसे जैसे उम्र गुज़रे
ज़िन्दगी का रंग उतरे
सोचता रहता हूँ तन्हा
मुझमें भीतर कौन बिखरे
साथ बहते आँसुओं में
खून के हैं चन्द कतरे
मन का पंछी चाहे उड़ना
पर दुखों ने पंख कुतरे
थक गया हूँ सहते सहते
ज़िन्दगी में तेरे नखरे
नष्ट होते इस जहां में
कौन कब तक यार ठहरे
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