होता अगर मैं एक शातिर

(शेर)- यह आज तुम्हारी रौनक है, इस बस्ती में इतनी।
हमको भी है ख़ुशी बहुत, इस दिल में इतनी।।
यह होती नहीं दिवाली, होता तेरे घर अंधेरा।
गर होता मैं आवारा, हो जाती बर्बाद तू कितनी।।
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होता अगर मैं एक शातिर, तो क्या होता तुम्हारा।
हो जाता बदनाम सच मेरे यार, दामन यह तुम्हारा।।
होता अगर मैं एक शातिर—————-।।
कैसे यह कहते हो तुम, मुझको है नफरत तुमसे।
वह ऐसा कौन है जिसको, प्यार है ज़्यादा तुमसे।।
होती अगर नफरत तुमसे, बर्बाद घर यह होता तुम्हारा।
होता अगर मैं एक शातिर ——————–।।
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(शेर)- तुमको यह गलतफहमी है कि, तुम्हारी दौलत चाहता हूँ।
मुझको और कोई नहीं मिली, इसलिए तुमको चाहता हूँ।।
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किस काम की है वह दौलत, जिससे नशा हो अहम का।
उड़ाये हंसी मुफलिसी की, नहीं नाम हो जिसमें शर्म का।।
होता अगर मैं बेशर्मी तो, कैसा होता यह हुस्न तुम्हारा।
होता अगर मैं एक शातिर—————–।।
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(शेर)- वह तुम्ही हो मेरी मजबूरी, कि मोहब्बत है मुझको हिन्दुस्तां से।
वरना मैं तो हूँ जी आजाद, मगर तुमसे है प्यार ईमान से।।
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मैं तो सिर्फ यही चाहता हूँ , तू भी वफ़ा हो मुझसे।
तुमसे नहीं हूँ मैं बेखबर, इज्जत मिले मुझको तुमसे।।
होता नहीं गर प्यार तुमसे, क्यों बहता खून हमारा।
होता अगर मैं एक शातिर——————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आजाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)