हाथ पताका, अंबर छू लूँ।
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डटकर, अड़ा रहूँ मैं रण पर
हार कभी न मानूँगा
मातृभूमि का वीर पुत्र हूँ
हाथ पताका अंबर छू लूँ।
थककर, खड़ा रहूँ न पथ पर
पार लक्ष्य कर जाऊँगा
मातृभूमि को सींचता लहू
हाथ पताका अंबर छू लूँ।
हंसकर खड़ा तान सीने पर।
वार दुश्मनो का जानूंगा
माँ भारती का रक्षक हूँ
हाथ पताका अंबर छू लूँ।
✍संजय कुमार “सन्जू”
शिमला हिमाचल प्रदेश