*हर शाम निहारूँ मै*
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हर शाम निहारूँ मै
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हर शाम निहारूँ मै,
दिन-रात पुकारूँ मै।
मँझदार फँसी किश्ती
उस पार उतारूँ मै।
हर हाल मुनासिब हो,
खुद रूप निखारूँ मै।
हो राय शुमारी सी,
पल भी न बिसारूँ मै।
वो नाम जुड़े मुझ से,
कर जोड़ गुहारूँ मै।
तू जान मुलायम सी,
आ प्यार दुलारूँ मैं।
हूँ लीन मै मनसीरत,
दुख दर्द निसारूँ मै।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)