हमारे दरमियान कुछ फासला है।

हमारे दरमियान कुछ फासला है।
कैसे कहूं ये कितना सा है?
इश्क़ में ऐसे हैं मुकाम आये
चले दो कदम और लड़खड़ाये।
मंजिल मेरी नज़र के सामने थी
बात होंठों के पहलू में दबी थी।
तय कर लिया मीलों का सफर।
जाने क्यूं तन्हा रहे हम मगर।
रो रो कर तुम्हें याद किया है
बस ऐसे खुद को बर्बाद किया है।
सुरिंदर कौर