स्मृतियाँ
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स्मृतियाँ
अतीत का
चलचित्र बन
मानसपट पर
उभरती हैं,
कौंधती हैं
दामिनी सी।
कभी सुभग,
कभी मर्मघाती,
तानाबाना
बुनता है
उथला सिंधु सा
अनुस्मरण।
मनुज
प्लवक बन
जलचर-सा
परिपल्व करता है,
सँवर की
प्रकृत
थाह लेने
और
मिथक से
जूझने का।