स्पंदित अरदास!
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ऑंचल के कोने बाॅंधा जो,
माॅ थोड़ा बचपन रख देना।
मन दीपक की लौ काॅंपे तो ,
प्रेम हथेली से ढक देना।।
बहुत कठिन है वचन निभाना,
दुर्गम पथ पर चलना भी।
माॅ तुमसे सीखा है मैंने,
नहीं किसी को छलना भी ।
वेद-ऋचा से कण-कण भर लूॅं
माथ-हाथ चंदन रख देना।
कभी भॅंवर सा मिलता जीवन,
कभी नेह-सरि जैसा भी।
आयु बदलती जाती है पर,
सुधियों का घर वैसा ही ।
पीड़ाओं से अर्चन कर लूॅं,
अधर ईश-वंदन रख देना!
रश्मि लहर