हे! ज्ञानदायनी
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/191eac0c5618d0204ab7c34d14ad29c7_77b18a1520436254a12aaab779bfcf57_600.jpg)
स्तुति करते तेरे चरणों में,
मन में फैला अंधकार हरो।
हे!ज्ञानदायनी शारद मां,
शत बार नमन स्वीकार करो।
प्रतिवर्ष पंचमी शुक्ल माघ,
माँ तेरा जन्म मनाते हैं।
अपनी श्रद्धा सामर्थ्य से हम,
तेरा श्रृंगार कराते है।
वीणा झनकार करा दो मां,
मन से अज्ञान हरा दो माँ।
अपनी कृपा हर बार करो
शत बार नमन स्वीकार करो।
जग तुम्हें पुकारे सरस्वती,
पूजे जन तपसी यती सती।
तुम ही हो ब्रह्मचारिणी मां।
वरदायनी वीणाधारिणी माँ।
तेरी कृपा जो भी पाता,
सारा का सारा तम जाता।
चाकर अपने दरबार करो।
शत बार नमन स्वीकार करो।
तेरा वाहन मां हंस धवल,
भक्तों को देती ज्ञान प्रवल।
तामस प्रचण्ड से भरे हैं हम,
जड़ता मन से न होती कम।
मुझमें अनुराग जगा दो मां,
चित हरि चरणों में लगा दो मां।
‘सृजन’ पर भी उपकार करो।
शत बार नमन स्वीकार करो।
स्तुति करते तेरे चरणों में,
मन में फैला अंधकार हरो।
हे!ज्ञान की देवी शारद मां,
शत बार नमन स्वीकार करो।
सतीश सृजन, लखनऊ.