सुनसान कब्रिस्तान को आकर जगाया आपने
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सुनसान कब्रिस्तान को आकर जगाया आपने
मेरी कब्र के सामने पर्दा उठाया आपने
कहती हो पर्दा उठ गया दीदार कर लूँ मैं
आवाज देकर अब मुझे क्यों बुलाया आपने
लो आ गया पर्दानशी नज़रें उठा के देख
आंसू बहाना छोड़ अब नजरे मिला के देख
तड़प उठी रुह हमारी तेरे गम के सामने
आंखों से मोती प्यार का जब गिराया आपने
चैन मिला है रुह को मेरी सच्च तेरे दीदार से
बैठी हो जबसे तुम सामने मेरी मजार के
तेरे दीदार के लिए थी कबसे रूह भटक रही
बेकरार रूह को करार दिलाया आपने
काश कि मैं लौट पाता यूँ इस कब्र से मेरी
प्यार से तुझको उठाता फिर कब्र से मेरी
गले लगाकर दूर करता दिल की उदासी मैं
पूछता मैरे लिए क्यूँ दिल जलाया आपने
क्या करूँ ना मैं ही रहा ना प्यार ही मेरा
अब तो करेगी बस रूह सुनो दीदार भी तेरा
शायद तेरे दीदार के काबिल नहीं था मैं
क्यों सूनी पड़ी कब्र पे प्यार जताया आपने
स्वरचित
V9द चौहान