साया ही सच्चा
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रहगुजर तो राह ही मे गुज़र गए ..
एक साया भर ही तो साथ था
ज़रा हुआ और घना अंधेरा
साया भी मेरा साथ छोड़ गया
अब फिर उस सहर का है इंतज़ार
जिंदगी जब फिर से होगी रोशन
कोई और हो ना हो मेरा
मेरा ही ग़ुम हुआ साया
चुपचाप फिर मेरे साथ होगा
यही सच है – जब भी हुआ अंधेरा
तो छुप के उस अँधेरे में भी
मेरा साया ही साथ खड़ा रहा
जिंदगी जब फिर से होगी रोशन
भले ही लोग नहीं होंगे
ना ही कोई कारवाँ होगा
बस साथ मेरा साया
एक मज़बूत जमीं और
एक साफ़ नीला आसमां होगा