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6 Dec 2022 · 7 min read

*सरकारी नौकरी (हास्य-व्यंग्य)*

सरकारी नौकरी (हास्य-व्यंग्य)
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सुबह ग्यारह बजे कार्यालय में ऊपर से एक मैसेज आया था । लिखा था “श्री सुशील कुमार जी (कार्यालय प्रभारी महोदय ) आप के कार्यालय में कार्यालय सहायक के रिक्त पद पर नियुक्ति की जानी है । साक्षात्कार के माध्यम से नियुक्ति प्रक्रिया तय की गई है । आप एक सदस्यीय साक्षात्कार समिति के अध्यक्ष रहेंगे । अखबार में विज्ञापन देकर एक पद के सापेक्ष पांच उम्मीदवारों को साक्षात्कार के लिए बुलाना होगा । प्रक्रिया तीन महीने के भीतर पूरी करने का कष्ट करें ।”
सुशील कुमार जी मैसेज पढ़कर बहुत आश्चर्यचकित हुए । खुशी भी हुई कि सरकार ने इतने बड़े दायित्व के लिए उन्हें चुना । सोचने लगे कि एक अच्छा ,कर्तव्यनिष्ठ , ईमानदार कार्यालय सहायक किस प्रकार से नियुक्त किया जाएगा ?
सुशील कुमार जी ने कार्यालय में किसी को मैसेज की भनक भी नहीं लगने दी। लेकिन एक घंटा गुजरा भी न था कि बॉस का टेलीफोन आ गया : “कहिए सुशील कुमार जी ! क्या हाल-चाल हैं । मैसेज पढ़ा होगा ? कार्यालय सहायक की नियुक्ति के लिए हमसे पूछे बगैर किसी को हां मत कह देना । नाम मैं आपको बता दूंगा। नमस्ते। ”
बॉस का टेलीफोन आते ही सुशील कुमार जी का चेहरा फीका पड़ गया । वह तो निष्पक्ष चयन के बारे में सोच रहे थे । एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ कार्यालय सहायक की उन्हें जरूरत थी ।.लेकिन अब तो नियुक्ति का सारा कार्य झमेले में पड़ता हुआ उन्हें नजर आ रहा था । बॉस के टेलीफोन का मतलब था ,उनके आदेश का पालन करना। जल में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया जा सकता । जरूर बॉस के दिमाग में किसी व्यक्ति का नाम चल रहा होगा ,जिसको सरकारी नौकरी पर लगवाने के लिए उन्होंने मुझे यह दायित्व सौंपा। सुशील कुमार जी सोच कर ही चिंतित हो उठे । उन्हें लगने लगा कि उनको बलि का बकरा बनाया जा रहा है।
बात कितनी भी छुपाओ लेकिन सरकारी नौकरी में नियुक्ति का प्रश्न जंगल में आग की तरह फैलता है । धीरे धीरे कार्यालय के सभी सहयोगी बधाई देने के लिए सुशील कुमार जी के इर्द-गिर्द इकट्ठे होने लगे । एक सहयोगी बाजार से मिठाई का डिब्बा ले आया और सब को मिठाई खिलाने लगा। सुशील कुमार जी ने उसे टोका ” क्यों भाई ! यह खर्चा किस लिए ? हम जश्न किस बात का मना रहे हैं ? ” सुनकर वह सहयोगी एक पल के लिए तो सकपकाया लेकिन फिर उसने कहा ” भाई साहब ! ऐसे मौके जिंदगी में बार-बार थोड़े ही मिलते हैं । आप इंटरव्यू कमेटी के अध्यक्ष हैं । वह भी केवल एक सदस्यीय चयन समिति के अध्यक्ष। सोने पर सुहागा है । फिर से बधाई ! ”
कार्यालय में सभी सहयोगियों की आंखों में चमक थी । धीरे धीरे कार्यालय के सहयोगी गण अपने असली मकसद पर आने लगे । शुरुआत उस आदमी ने की जो बाजार से मिठाई का डिब्बा लेकर आया था। सुशील कुमार जी के कान में फुसफुसाया- ” साहब ! मेरा साला बेरोजगार है । नौकरी से लगवा देंगे ,तो बड़ी कृपा होगी । खर्च करने में पीछे नहीं हटेगा ।”
सुनकर सुशील कुमार जी को गुस्सा तो आया लेकिन उन्होंने बात को अनसुना कर दिया । मिठाई वाले से कहा “आप जाइए ! मुझे कुछ काम करने हैं।”वह गुमसुम-सा चला गया । इस बीच कार्यालय के एक-दो अन्य सहयोगियों ने भी अपने-अपने कुछ रिश्तेदारों की बेरोजगारी का जिक्र किया और परोक्ष रूप से ही सही लेकिन इस बात को बताने से नहीं चूके कि उनका रिश्तेदार पैसा खर्च करने में पीछे नहीं हटने वाला है।
शाम को जब कार्यालय से सुशील कुमार जी निकले तो वह एक सेलिब्रिटी बन चुके थे । कार पार्किंग के चौकीदार ने जिंदगी में पहली बार उन्हें सलाम किया और कहा ” बधाई हो साहब ! हमारा बेटा बेरोजगार है । उसका ख्याल रख लेना। ज्यादा तो नहीं है हमारे पास ,लेकिन पत्नी के जेवर बेच कर भी हम बेटे को काम पर जरूर लगवा देंगे ।”सुशील कुमार जी ने उसकी तरफ से भी मुंह फेर लिया और कार में बैठकर एक तरह से मुंह छुपाते हुए कार्यालय से चले गए।
घर पहुंचे तो पत्नी ने चहचहाते हुए कहा “जानते हो ,आज कौन आए हैं ? ”
सुशील कुमार जी ने कहा “मुझे क्या पता कौन आए हैं ? ”
“मेरे भैया आए हैं, तुमसे मिलने के लिए ।”
पत्नी अपने भाई के पास सुशील कुमार जी को मिलवाने ले गई । सुशील कुमार जी को देखते ही उनके साले साहब चेहरे पर मधुर मुस्कान लिए हुए उठकर खड़े हो गए। मेज मिठाई और दालमोठ से ही नहीं अपितु एक शानदार फलों की टोकरी से भी भरी हुई थी । इतनी गिफ्ट लेकर साले साहब कभी नहीं आए थे । सुशील कुमार जी समझ गए कि यह रिश्वत की शुरुआत है ।
“कैसे हैं जीजा जी ? अब तो सुना है आपके हाथ में बहुत कुछ आ गया है । हम जानते थे कि आप तरक्की करके जरूर एक दिन बहुत बढ़िया अफसर बनेंगे । दीपू कई साल से बेरोजगार है । अब तो खुशियों के दिन लगता है आ जाएंगे ।”
इससे पहले कि सुशील कुमार जी कुछ कहते ,उनकी पत्नी ने अपने भाई से कहा ” क्यों चिंता करते हो ? अगर हमारे भतीजे को नौकरी नहीं मिलेगी तो भला इस संसार में और कौन इस नौकरी पर बैठ सकता है । तुम निश्चिंत रहो ,इंटरव्यू में दीपू का ही चयन होगा। यह हमारी तरफ से आपको वायदा है ।”
बहन का वायदा भाई के उत्साह को चौगुना कर गया। “जब बहन की सिफारिश है तो बहनोई को माननी ही पड़ेगी”- सोचते हुए साले साहब उठ खड़े हुए और कहने लगे “जीजा जी ! अब मैं चलता हूं । दीपू को खुशखबरी सुनानी है ।”
सुशील कुमार जी ने बहुत चाहा कि अपने साले साहब को यह बता सकें कि नौकरी निष्पक्षता के आधार पर होगी ,लेकिन वातावरण कुछ ऐसा बन गया था कि उन्हें कुछ कहने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी।
अगले दिन सुबह सुशील कुमार जी सो कर भी नहीं उठे थे कि घर के दरवाजे की घंटी बजी । सोचने लगे कि.इतनी सुबह-सुबह कौन आ गया ? अनेक आशंकाएं मन में लिए हुए डरते-डरते उन्होंने दरवाजा खोला तो देखा सामने मौसा जी खड़े हैं । कई साल बाद आए थे । सुशील कुमार जी का मन प्रसन्न हो गया ।
“आइए मौसा जी !”-कहते हुए उन्होंने मौसा जी को घर में प्रवेश दिलाया । उनके साथ में उनका छोटा बेटा भी था ।
“मौसा जी ! आज सुबह-सुबह कैसे तकलीफ कर ली ? मुझे बुला लिया होता तो मैं आ जाता ।”-सुशील कुमार जी ने वयोवृद्ध मौसा जी के प्रति आदर व्यक्त करते हुए कहा ।
“अरे बेटा ! तुम्हें बुला लेते तो तुम आ भी जाते लेकिन पुरानी कहावत मशहूर है कि प्यासा कुएं के पास जाता है । सो हम तुम्हारे पास चल कर आ गए । अब यह बताओ कि तुम्हारा यह छोटा भाई जो उम्र में तुमसे बहुत छोटा है ,कब तक बेरोजगार रहेगा ? तुम्हारे हाथ में सब कुछ है । इसे नौकरी दिला देना तो जीवन भर तुम्हारे गुण गाता रहेगा।” सुनकर सुशील कुमार जी के ऊपर मानो घड़ों पानी गिर गया । सोचने लगे यहां भी नौकरी में नियुक्ति का प्रश्न चल रहा है । कहने लगे -” मौसा जी ! कल से मैं बहुत परेशान चल रहा हूं । समझ में नहीं आता किसे नौकरी पर रखा जाए और किसे छोड़ा जाए ?”
सुनते ही मौसा जी आग बबूला हो गए। ” कैसी बात कर रहे हो सुशील ! अपने मौसा जी से ऐसा कहते हुए तुम्हें जरा भी लाज नहीं आती । आज अगर तुम्हारे पिताजी जीवित होते तो मेरे एक टेलीफोन से वह नौकरी पक्की कर देते । मुझे आने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती । लेकिन मैं खुद चलकर तुम्हारे पास आया हूं और उसके बाद भी इतनी बेरुखी ? पद पर बैठकर अपने रिश्तेदारों को ही पहचानने से मना कर रहे हो ? कम से कम ऐसा तो मत करो ?”
सुशील कुमार जी ने अपनी पत्नी की तरफ मुंह उठाकर देखा । पत्नी भी परेशान हो रही थी । अभी कल तो वह अपने भतीजे दीपू के लिए नौकरी की बात कर रही थी और अब मौसा जी उसी नौकरी के लिए सामने खड़े थे । आखिर सुशील कुमार जी की पत्नी ने ही बात संभाली और कहा ” मौसा जी ! आप बुरा मत मानिए । इनके कहने का मतलब यही है कि अभी तो नौकरी देने में कई काम बाकी है । बीच में फिर आपसे बातचीत हो जाएगी।”
मौसा जी बोले ” मैं सब समझता हूं बेटी ! दुनिया जिस रास्ते पर चल रही है ,उस पर सुशील भी चलेगा तो मैं बुरा नहीं मानूंगा। मैं अपने साथ भेंट लेकर आया हूं।”- इतना कहकर मौसा जी ने अपने दाहिने हाथ में पकड़े गए झोले से नोटों की गड्डियां निकालकर सुशील कुमार जी के सामने रख दीं। फिर बोले ” बेटा ! इन्हें ले जाकर अंदर अलमारी में रख दो ।”
“मैं रिश्वत नहीं लेता । आप तो जानते हैं।”
” हम रिश्वत कब दे रहे हैं ? हम तो तुम्हें मिठाई खाने के पैसे दे रहे हैं । क्या यह भी हमारा अधिकार नहीं है ? ”
सुशील कुमार जी परेशान हो गए । कहने लगे ” मौसा जी ! कुछ भी हो ,यह पैसे तो मैं नहीं लूंगा । नियुक्ति के बारे में आपसे बातचीत हो जाएगी । किसी न किसी की नियुक्ति तो करनी ही पड़ेगी ।”
सुशील कुमार जी के कठोर रुख को देखते हुए मौसा जी ने नोटों की गड्डियां पुनः थैले में रख लीं। चलने के लिए उठ खड़े हुए और बोले ” यह तुम्हारी अमानत है ,जो मेरे पास इंटरव्यू तक रहेगी । इसमें और जितना जोड़ना हो ,बता देना । मैं दे दूंगा ,लेकिन नौकरी तुम्हारे मौसेरे भाई को ही मिलनी चाहिए ।”
सुशील कुमार जी सूनी आंखों से मौसा जी को जाते हुए देखने लगे । जब मौसा जी चले गए ,तब सुशील कुमार जी ने अपनी बीमारी के कारण छुट्टी का प्रार्थना पत्र उच्च अधिकारियों के नाम लिखा । पत्र में लिखा था -“महोदय ! मैं गंभीर रूप से बीमार हूं । पेट में दर्द चल रहा है । अतः तीन महीने का अवकाश चाहता हूं । मेरे कार्य किसी अन्य से संपन्न करा लिए जाएं ।”
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लेखक: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451

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