सपेरा
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बीन की आवाज सुनकर,
खुल गये घर के कपाट,
दौड़ के आए नन्हे मुन्ने ,
देखने सपेरा के सांप ।
फन फैलाये नाग नागिन,
सुन कर बीन की तान,
बाबा संत के वेश में,
सपेरा दिखाए नाच ।
काल को हाथ में लेकर,
दर्शन कराये गलियों में ,
हो जाए खुश नन्हे मुन्ने,
जिन्होंने न देखा जिंदा सांप।
मन प्रसन्न होकर घर को लौटे,
देकर झोली में दान,
प्रकृति का है ये जीव धारी,
सपेरा बीन संग रखे साथ।
रचनाकार ✍🏼✍🏼
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।