सपन सुनहरे आँज कर, दे नयनों को चैन ।
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सपन सुनहरे आँज कर, दे नयनों को चैन ।
तनमन की सब थकन हर, गयी कहाँ तू रैन ।।
भोर सुनहरी आ गयी, जाग अरे ! जड़ जीव ।
भेद तमस मन का सकल,रख ओजस की नींव ।।
© सीमा अग्रवाल
सपन सुनहरे आँज कर, दे नयनों को चैन ।
तनमन की सब थकन हर, गयी कहाँ तू रैन ।।
भोर सुनहरी आ गयी, जाग अरे ! जड़ जीव ।
भेद तमस मन का सकल,रख ओजस की नींव ।।
© सीमा अग्रवाल