* सत्य एक है *
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** गीतिका **
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सत्य एक है जिनको ज्ञानी, अलग ढंग से कहते।
ज्ञान सिंधु में सब मिल जाता, अविरल बढ़ते बढ़ते।
सत्य भावनाओं से ऊपर, रौशन पथ करता है।
ठोकर भी लग जाए जब जब, पथ पर चलते चलते।
जो चल पड़ते प्रश्न न करते, मौन धरें रहते हैं।
राह सत्य की बहुत कठिन है, अक्सर सब यह कहते।
सूर्य चमकता है तम मिटता, सत्य यही है जानों।
मिथ्या तम है दूर दूर तक, जब दीपक हैं बुझते।
स्थान समय पर सत्य बदलता, है जब जब भी देखो।
रूप बदलते किन्तु भाव तो, सत्य के नहीं बदलते।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य