* सखी *
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डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* सखी *
सखी कहीं प्यार न हो जाए तुमसे
एक ही कविता में सम्पूर्ण उपवन
की सैर करा देती हो |
अपनी सुनहरी लेखनी से सुखद स्वप्न
नैनों में जागा देती हो |
जीवन्त विविधताओं को विसंगतियों की
सुकल्पित लहरियों में पिरो कर
साक्षात नीरस नभ पर
आकाश कुसुम खिला देती हो |
सखी कहीं प्यार न हो जाए तुमसे