शिक्षक श्री कृष्ण
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जब वंशीधर गुरु बने,
बाँटा गीता ज्ञान ,
सार जीवन दर्शन का,
धर्म कर्म निर्वाण,
धर्म कर्म निर्वाण ,
चक्र क्या मोह माया का ?
अमर अजर है ’जीव’ .
क्षरण होता काया का,
पार्थ हुए चैतन्य ,
खुल गये ज्ञान चक्षु तब,
रण भूमि कुरुक्षेत्र ,
कॄष्ण ने ज्ञान दिया जब !
-ओम प्रकाश नौटियाल