शिकवा नहीं मुझे किसी से
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बहुत खेला है जज़्बातों से मेरे सबने
बहुत दुखाया है दिल को मेरे सबने
बहुत रुलाया है आंखों को मेरी सबने
बहुत तड़पाया है रुह को मेरी सबने
मैं वक्त बेवक्त याद करती रही
और सब मुझे नजरंदाज करते रहे
फिर भी…,
शिकवा नहीं है अब मुझे किसी से
क्यूंकि ये दिल अब अच्छी तरह समझ चुका है
कि कितना भी संभलकर चल लो
गर खुदसे ज्यादा किसी को एहमियत दोगे
तो फिसल जाओगे जिंदगी की राहों में।
ख्वाहिशों का मेरी सबने कत्ल कर दिया
बेदर्दी से एहसासों का मेरे मजाक बना दिया
प्यार को मेरे पांव तले कुचलकर रख दिया
निशानियाँ भरे मेरी चाहत के खत को फाड़ दिया
नज़ाकत से मेरी उम्मीद की कश्ती को डुबो दिया
कभी अनजाने में तो कभी जानकर
एक एक करके मेरे भरोसे को तोड़ दिया
वादे से अपने सब मुकरते चले गए
मैं वफाएं करती रही सब मुझे धोखा देते रहे
फिर भी…,
शिकवा नहीं है अब मुझे किसी से
क्यूंकि ये दिल अब अच्छी तरह समझ चुका है
कि ये दुनियां है, यहां ऐसा ही होता है।
– सुमन मीना (अदिति)