शबे- फित्ना
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शबे- फित्ना
बिखरने दो धूप को
आसमाँ को नंगे पांव चलने दो
गलने दो ये दाग़ दिल के
३मता- ए- नफस हमें नहीं चाहिए
सो गई जमीं तो, तारे नींद उगलने दो
पांव हैं बहुरंगी सर तक
उस नज़र पर ४बार है , तो क्या हुआ?
रात के ख़ामोशी में, मुझको सजाएँ है तो क्या
ढूँढ लाओ महताब मेरा… रोशनी हैं तो क्या
जवाब रखके चलो तुम
१शबे – फित्ना है मेरी
रात के दूधिया – सा आँचल
ख़ूब नहाया २हब्स- सा होकर
नहीं है इश्क अब… जाने दो उसे, जाने दो!
वो चीज पराई क्या?
जो रूठ जाएँ हमेशा ही
ख़ामोश जंजीर में बंधकर ही, न जाओ तुम यारा
कैसे जिएगा ये दिल जो नाम याद करता है तुम्हारा
१ उपद्रव की रात २ उमस ३ साँसों की पूंजी ४ बोझ
– मनोज कुमार
गोंडा उत्तर प्रदेश