शक्ति
शक्ति:
धुंधली-2 सी परछाई।
विहिव्ल मन पर छाई।
दया दृष्टि पाने को तेरी।
यों आँख मेरी भरआई।
शक्ति का स्वरूप है तू !
हर ओर तिमिर माँ धूप है तू !
आँचल तेरा नील गगन सा।
निशा विभावरी बन आई।
तेरी दया की कोर चाहिये।
यहाँ-वहाँ हर छोर चाहिये।
उजली-निखरी भोर चाहिये।
नव-निर्मित चहु ओर चाहिये।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड