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25 Sep 2022 · 1 min read

वफ़ा मानते रहे

ग़ज़ल

हम दिल जिगर से उनको,खुदा मानते रहे
उनके ही दिल को अपना ,पता मानते रहे

जो उनकी धड़कनों से ,किसी ने किया अलग
अपनी नज़र में अपनी , कज़ा मानते रहे

सैलाब धूप धुंध , खिजाँ बारिशें बहार
यूँ हसरतों के दर को ,वफ़ा मानते रहे

था सिलसिला नया जो ,बहुत प्यार से उसे
हम इश़्क की नसीन , हया मानते रहे

नज़रें लगीं उन्हीं पे ,नज़ारों से काम क्या
हर वक्त हम उन्हीं का , कहा मानते रहे

साँसों को धडकनों से ,सुधा जोड़ कर कहे
हम सादगी से हिज्र , सजा मानते रहे

डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
23/9/2022
वाराणसी,©®

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 74 Views

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