Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Mar 2017 · 6 min read

वो एक रात 6

#वो एक रात 6

रवि अंदर की ओर भागता चला गया। अचानक वह किसी से टकराया। वह नीलिमा थी जो रवि की चीख सुनकर बाहर चली आई थी। रवि को बदहवास भागते देखकर नीलिमा ने उसे मुश्किल से सँभाला। वह उसे बैडरूम में लेकर आई और उसे किचन से पानी लाकर पिलाया। बहुत देर बाद जाकर रवि संयत हुआ। नीलिमा ने उससे पूछा क्या बात थी।
“नीलू….. नीलू कार में…… ”
“कार में क्या…..?
कार की बात सुनकर नीलिमा के कान खडे़ हो गए।
“च… चलो बाहर कार क… के पास चलो” रवि ने खडे़ होकर कहा।
“नीलू अचम्भित सी रवि के पीछे पीछे चल दी।
रवि डरता डरता कार के पास पहुँचा।
रवि चौंक गया। कार की डिग्गी बंद थी। जोकि थोड़ी देर पहले खुली थी।
“नीलू… नी…. लू डि… डिग्गी तो खुली थी अभी…. और।”
नीलू चौंक गई “कैसी बात करते हो रवि, बिना चाबी के डिग्गी कैसे खुल गई!”
“लेकिन अभी जब मैं आया तो डिग्गी खुली थी और…. ”
“और क्या! आखिर इस डिग्गी में ऐसा क्या है जो दिखाई नहीं देता। ठहरो आप… मैं चाबी लाती हूँ…. आज मैं डिग्गी को अच्छी तरह से चैक करूँगी।” इतना कहकर नीलू चाबी लेने चली गई।
रात की नीरवता चरम पर थी। हल्की हल्की ठंडी हवाएँ चल रही थी। कुत्तों की आवाजें हल्की हल्की आ रही थी। रवि कार के पास खड़ा डिग्गी को आँख फाड़े देख रहा था। ये क्या हो रहा है? जो मैं देखता हूँ वो नीलू क्यूँ नहीं देख पाती? आखिर ये चक्कर क्या है! अचानक रवि को लगा कि कोई उसके पीछे खड़ा है। उसकी घिघ्घी बँध गई। वह पीछे मुड़कर देखना चाहता था। लेकिन उसे डर लग रहा था। उसने आखिर कार पीछे देखा तो…… वहाँ कोई नहीं था लेकिन उसे आँगन की दीवार के पीछे कुछ अजीब सी आवाजें व खुरचने की आवाज सुनाई दी।
“कौन हो सकता है वहाँ?” रवि ने सोचा। रवि धीरे-धीरे दीवार की ओर बढ़ने लगा। वहाँ अँधेरा था। आँगन की दीवार ज्यादा बड़ी नहीं थी। आवाजें…… अभी भी आ रही थी। बहुत ही अजीब सी आवाजें थीं। जैसे किसी के गले में कुछ अटका हुआ हो।
“रवि वहाँ क्या कर रहे हो? ”
रवि एकदम से उछल पडा़।
“ओह नीलू तुम हो। मैं तो…… खैर छोडो़ लाओ चाबी दो।
नहीं…. नीलू तुम ख… खोलो।”
नीलिमा ने कार की डिग्गी खोली। रवि बहुत मुश्किल से खुद को सँभाल रहा था। लेकिन नीलू ने जैसे ही डिग्गी खोली, डिग्गी खाली थी। उसमें कुछ नहीं था। रवि की आँखें चौड़ी हो गई, फिर वही बात…… । आखिर क्या है ये।
“रवि तुम बताते क्यूँ नहीं…. आखिर बात क्या है?” नीलू ने डिग्गी को बंद करते हुए कहा। नीलू ने जैसे ही डिग्गी बंद की….. उसे रवि दिखाई न दिया।
“रवि…. रवि…… कहाँ चले गए! ” नीलिमा ने कार के चारों ओर व आँगन में खूब ढूँढा परंतु रवि कहीं नहीं दिखाई दिया।
“अभी तो यहीं खडे़ थे, अचानक कहाँ चले गए? ” नीलू ने आश्चर्य से कहा। कहीं अंदर तो नहीं चले गए……. नीलिमा रवि को पूकारती हुई अंदर को चली गई…….
और उधर…… कार के पास खड़ा हुआ एक भयानक साया अपनी चमकती आँखों के साथ भयंकर हँसी हँस रहा था। फिर वह साया उछलता हुआ सा दीवार के पास आया और छिपकली की तरह दीवार पर चिपककर अजीब सी मगर भयानक आवाजें निकालता हुआ ऊपर की और तेजी से चढ़ता चला गया।
अब नीलिमा की हालत रोने वाली हो गई थी। वह रवि को घर और आँगन में सब जगह ढूँढ चुकी थी लेकिन रवि कहीं नहीं मिला।
नीलिमा रोती हुई रवि को पुकारती फिर रही थी। लेकिन रवि की परछाई तक भी नहीं दिखाई दी।
“रवि……. रवि…….. देखो मुझे परेशान मत करो…….. रवि….. कहाँ हो तुम…… रवि……….. आ जाओ।” रोती हुई नीलिमा की हालत बहुत खराब हो चली थी। रात के दो बज चुके थे। नीलिमा आँगन के बाहर खड़ी सुबक रही थी। क्या करूँ……. उसने सोचा कि अब पडो़स वालों को उठाया जाए। किसका दरवाजा खटखटाऊं…… इस समय….. यहाँ के लोग तो वैसे भी…….. डाॅक्टर साहब को बुलाऊँ……. हाँ वे अच्छे इंसान हैं…. उन्हें ही बुलाकर लाती हूँ । रवि…… कहाँ हो तुम…… रोती हुई नीलिमा जैसे ही बाहर को चली……. उसे छत से रवि के चिल्लाने की आवाजें आईं…….
“रवि…… यह तो रवि की आवाज है…. रवि छत पर….. है।” नीलिमा भागती हुई छत पर चढ़ती चली गई।
*************************************************
चारों बातें करते-करते थक चुके थे। दिनेश गाड़ी चला रहा था जबकि मनु, इशी व सुसी ऊँघ रहे थे। सड़क जंगल में सुरंग की तरह लग रही थी। वे जंगल में घुसते जा रहे थे। शाम के 6 बज चुके थे। तभी अचानक सड़क के एक और के जंगल से कोई अजीब सा जानवर निकला। वह थोड़ी देर सड़क के बीच खड़ा हो गया। दिनेश ने देखा की सड़क पर कोई खड़ा है। इतना दिनेश ने ब्रेक मारे इतने में वह जानवर सड़क के दूसरी और के जंगल में घुस गया। ब्रेक इतने जौर से लगे थे कि तीनों की नींद टूट गई।
“क्या हुआ…? गाड़ी क्यूँ रोक दी? अभी तो रात भी नहीं हुई सड़क पर ही रात बिताने का इरादा है क्या?” इशी बोली।
“अरे नहीं…… सड़क के बीच में कोई खड़ा था।” दिनेश बोला।
“कौन खड़ा था?” मनु बोला।
“अच्छी तरह से नहीं दिखा, पर खड़ा था।” दिनेश ने कहा।
“कहीं………… ।” सुसी ने कुछ कहना चाहा लेकिन उसने अपनी बात होठों में ही दबा ली।
“अरे कौन होता है जंगल में…… कोई जानवर होगा….. और कौन…… ।” इशी ने कहा। “चलो अब गाड़ी स्टार्ट करो…. और मनु तुम चलाओ अब…….. दिनेश को आराम करने दो। वह थक गया है।” इशी ने कहा।
“ए….. मैडम, मैं लगातार दो दिन तक ड्राइविंग कर सकता हूँ, समझी….. ऊँघ तो तुम तीनो रहे थे।” दिनेश ने कहा।
“फिर भी जब ओप्शन है तो एक ही बंदा कंटिन्यू क्यूँ ड्राइविंग करे।” सुसी ने कहा।
“ठीक है दिनेश, तुम आराम करो, मैं चलाता हूँ गाड़ी।” मनु ने कहा।
“ठीक है दोस्तों जैसा तुम चाहो।” इतना कहकर दिनेश ने ड्राइविंग सीट छोड़ दी।
और फिर…….
मनु ने गाड़ी स्टार्ट की और चारों फिर जंगल में सड़क के साथ घुसने लगे।
ऊधर उस अजीब से जानवर की चमकती आँखें जंगल से उनकी गाड़ी को घूर रही थी।
चारों बातें करते जा रहे थे। थोड़ी देर में दिनेश, सुसी व इशी ऊँघने लगे और मनु गाड़ी चलाने में व्यस्त हो गया। थोड़ी देर में गाड़ी वहाँ आ पहुँची जहाँ पक्की सड़क खत्म हो चुकी थी। और बोर्ड पर आगे जाना मना लिखा था। मनु रुका नहीं उसने गाड़ी कच्ची सड़क पर उतार दी जो उस रहस्यमय जंगल के अंदर जाती थी। कच्ची सड़क आगे जाकर संकरी हो गई और गाड़ी हिचकोले लेकर चलने लगी। चारों तरफ बड़े बडे़ पेड़ खड़े थे। अँधेरा बढ़ता जा रहा था। तीनों की नींद उड़ चुकी थी। जंगल में हुए अँधेरे को देखकर सुसी का मन घबरा गया।
“दिनेश…….. कैंप कहाँ लगाओगे? ”
“अरे थोड़ा और अंदर तो जाने दो।” दिनेश बोला।
“जंगल में नीरवता होती है। अत: वहाँ रात जल्दी घिर आती है। रात सांयेसांये कर रही थी। झींगुर की आवाजें बहुत तेजी से आ रही थीं। गाड़ी और हिचकोले लेने लगी। अब जंगल का रास्ता और तंग होता जा रहा था। रास्ते के दोनों तरफ पेड़ों के घने झुंड थे। जंगल में अंदर घुसने के रास्ते के अलावा और कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे। सुसी को डरता देखकर इशी ने उसकी हिम्मत बढाने के लिए बोला “अरे सुसी तुम डर रही हो! ”
कैसा डर, अँधेरे से डर… हहहहहहाआआ”
“अरे नहीं इशी देखो तो यहाँ कितनी अजीब सी शांति है।”
“तो, शांति से भी डर लगता है तुम्हें।” दिनेश ने कहा।
“शांति से नहीं परंतु ये शांति भी कितनी डरावनी लग रही है न।” सुसी ने कहा।
“मुझे तो ऐसा कुछ महसूस नहीं हो रहा।” इशी ने कंधे उचकाते हुए कहा।
सुसी कुछ न बोली बस बाहर जंगल की नीरवता को अपनी शून्य आँखों से निहारती रही। अचानक मनु ने गाड़ी रोक दी।
“क्या हुआ? ”
“तीनों ने पूछा।
“क्या होता, यहाँ देखो आगे।”
तीनों की आँखें चौंक गई। आगे रास्ता ही नहीं था। कच्चा रास्ता भी खत्म हो चुका था। सामने बडे़ बडे़ पेड़ और लंबी घासें थी। तुडे़ मुडे़ पेड़ और पेड़ों की शाखाएँ भी एक-दूसरे से मिली हुई थी।
अब क्या करना है! चारों ने गाड़ी में ही विचार विमर्श करने का निश्चय किया और गाड़ी को चारों तरफ से लाॅक कर ली।
पेड़ों पर उल्लुओं की आँखें चमक रही थी। और कभी-कभी जंगली जानवरों की आवाजें भी वातावरण को दहशतनुमा बना देती थी। अजीब सा और रोमांचक वातावरण था जंगल का………. ।
सोनू हंस

Language: Hindi
373 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
The enchanting whistle of the train.
The enchanting whistle of the train.
Manisha Manjari
मैं क्यों याद करूँ उनको
मैं क्यों याद करूँ उनको
gurudeenverma198
स्वयं को स्वयं पर
स्वयं को स्वयं पर
Dr fauzia Naseem shad
3272.*पूर्णिका*
3272.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जरुरी है बहुत जिंदगी में इश्क मगर,
जरुरी है बहुत जिंदगी में इश्क मगर,
शेखर सिंह
निकाल देते हैं
निकाल देते हैं
Sûrëkhâ
*विद्या  विनय  के  साथ  हो,  माँ शारदे वर दो*
*विद्या विनय के साथ हो, माँ शारदे वर दो*
Ravi Prakash
राम तेरी माया
राम तेरी माया
Swami Ganganiya
#लाश_पर_अभिलाष_की_बंसी_सुखद_कैसे_बजाएं?
#लाश_पर_अभिलाष_की_बंसी_सुखद_कैसे_बजाएं?
संजीव शुक्ल 'सचिन'
जब मुझसे मिलने आना तुम
जब मुझसे मिलने आना तुम
Shweta Soni
सर्दी का उल्लास
सर्दी का उल्लास
Harish Chandra Pande
"लोग करते वही हैं"
Ajit Kumar "Karn"
शिखर के शीर्ष पर
शिखर के शीर्ष पर
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
जिंदगी का मुसाफ़िर
जिंदगी का मुसाफ़िर
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
रिश्ते
रिश्ते
Ram Krishan Rastogi
बदनाम से
बदनाम से
विजय कुमार नामदेव
वो मेरा है
वो मेरा है
Rajender Kumar Miraaj
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
#छंद के लक्षण एवं प्रकार
#छंद के लक्षण एवं प्रकार
आर.एस. 'प्रीतम'
'ਸਾਜਿਸ਼'
'ਸਾਜਿਸ਼'
विनोद सिल्ला
"सवाल"
Dr. Kishan tandon kranti
भोला-भाला गुड्डा
भोला-भाला गुड्डा
Kanchan Khanna
अभ्यर्थी हूँ
अभ्यर्थी हूँ
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
कविता-
कविता- "हम न तो कभी हमसफ़र थे"
Dr Tabassum Jahan
ममता
ममता
Dr. Pradeep Kumar Sharma
शायरी - गुल सा तू तेरा साथ ख़ुशबू सा - संदीप ठाकुर
शायरी - गुल सा तू तेरा साथ ख़ुशबू सा - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
दिल का गुस्सा
दिल का गुस्सा
Madhu Shah
तख्तापलट
तख्तापलट
Shekhar Chandra Mitra
हर वर्ष जलाते हो हर वर्ष वो बचता है।
हर वर्ष जलाते हो हर वर्ष वो बचता है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
सूरज दादा
सूरज दादा
डॉ. शिव लहरी
Loading...