विरह के दु:ख में रो के सिर्फ़ आहें भरते हैं
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विरह के दु:ख में रो के सिर्फ़ आहें भरते हैं
न नींदें हैं सनम, बस रतजगा ही करते हैं
चले भी आओ देखूँ इक नज़र भर ही, आहा!
फ़क़त ये आरज़ू और जुस्तजू ही करते हैं
महावीर उत्तरांचली