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22 Sep 2016 · 1 min read

विधुर बाप

विधुर बाप

विधुर बाप निर्बल ,असहाय
बेचारा सा होता है
है अगर छोटी -छोटी गुडिया तो
किस्मत का मारा होता है

है अबोध ,अनजान शिशु तो
माँ जैसा ही  दुलारा होता है
शीतल , सौम्य ,स्नेहदायिनी
दुग्ध की धारा सा  प्यारा होता है

बड़ी -बडी बेटियों के लिए तो
मर्यादा का रखवाला होता है
पथ भटके जवां लाडलियाँ तो
तो सही राह दिखाने वाला होता है

हो जाये विधुर यौवनावस्था में
तो भटके हुए तारे जैसा होता है
कामनाओं के सरोवर में बिना
पानी के मछली जैसा होता है

हो जाये विधुर चालीस के पार तो
कोई बात करने वाला न होता है
आवश्यकताओं की पूर्ति न होने पर
सागर में रेगिस्तान जैसा होता है

— डाँ मधु त्रिवेदी

Language: Hindi
73 Likes · 508 Views
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