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31 Mar 2017 · 1 min read

रेहनुमा

मेरी पिर तुझें क्यों दिखाई नहीं देती.
मेरी हसरतो की खीझ तुझे सुनाई नहीं देती.
मौला ना रहा मेरे पिर का अब वो.
ये रेहनुमा तुझे इस कायनात में दिखाई नहीं देती.

अतराफ छलक उठती आंखों से उनकी.
मेरे दिल की सिसकियां उन्हे सुनाई नहीं देती.
कोई पुछ ले हुज़ूर मेरी बिखरी उल्फतो का हाल.
ये रेहनुमा तुझे इस कायनात में दिखाई नहीं देती.

अजीब मंजर रहा इश्क़ का रेहनुमा बन.
मेरी जज्बतो की कदर उन्हें दिखाई नहीं देती.
लोग सुनते मेरे खुलूर को आँखों में जिगर की प्यास भर.
ये रेहनुमा इस कायनात में दिखाई नहीं देती.

अवधेश कुमार राय “अवध”

Language: Hindi
Tag: कविता
343 Views
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