रेशमी रुमाल पर विवाह गीत (सेहरा) छपा था*

*अतीत की यादें*
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*हमारी सुधा बुआ के विवाह दिनांक 6 – 3 – 61 में रेशमी रुमाल पर विवाह गीत (सेहरा) छपा था*
आजकल विवाह के अवसर पर कान-फोड़ू संगीत बजता रहता है , लेकिन एक जमाना था जब विवाह समारोह काव्यात्मकता से ओतप्रोत होता था । जीवन में सुमधुर काव्य की छटा चारों ओर बिखरी रहती थी । जन सामान्य काव्य प्रेमी था और विवाह में जब तक एक सेहरा न हो ,समारोह अधूरा ही लगता था । क्या धनी और क्या निर्धन ! सभी के विवाह में कोई न कोई कवि पधार कर विवाह गीत (सेहरा) अवश्य प्रस्तुत करते थे। आमतौर पर स्थानीय कवि इस कार्य का दायित्व सँभालते थे । जनता उन्हें रुचिपूर्वक सुनती थी तथा घरवाले अत्यंत आग्रह और सम्मान के साथ उनसे मंगल गीत लिखवाते थे ,छपवाते थे और बरातियों तथा घरातियों में उस गीत को वितरित किया जाता था।
आमतौर पर तो यह कार्य कागज पर छपाई के साथ पूरा हो जाता था, लेकिन जब 1961 में हमारी सुधा बुआ का विवाह हुआ ,तब वर पक्ष ने जो मंगल गीत छपवाया , वह पीले रंग के खूबसूरत रेशमी रुमाल पर छपा हुआ था । क्या कहने ! जितना सुंदर गीत था , उतनी ही सुंदर रेशमी रुमाल की भेंट थी। शायद ही किसी विवाह समारोह में इस प्रकार रुमाल की भेंट दी गई होगी।
एक और काव्यात्मकता की दृष्टि से महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि हम लोगों के विवाह में जयमाल और फेरों के पश्चात कुछ घरेलू रस्में चलती हैं । इनमें भी विशेष महत्वपूर्ण *छंद कहने की रस्म* है । दूल्हे को उसकी सालियाँ घेर कर बैठ जाती हैं। ससुराल पक्ष के और भी लोग होते हैं। उस समय दूल्हे को कोई *छंद* सुनाने के लिए कहा जाता है। यह हँसी – मजाक का समय रहता है ,जिसमें और कुछ नहीं तो यह बात तो परिलक्षित हो ही रही है कि काव्य का हमारे जीवन में एक विशेष महत्व है तथा विवाह संस्कार में भी उस काव्यात्मकता की अनदेखी नहीं की जाती।
खैर ,मूल विषय रेशमी रुमाल पर छपा हुआ सेहरा गीत है।
रेशमी रुमाल पर सुंदर छपाई के साथ विवाह गीत इन शब्दों में आरंभ होता है :-
*श्री प्रमोद कुमार एवं कुमारी सुधा रानी* *के* *प्रणय सूत्र बंधन पर्व* *पर*
विवाह गीत (सेहरे) पर विवाह की तिथि *दिनांक 6 – 3 – 61* अंकित है ।
*विवाह गीत सेहरा इस प्रकार है:-*
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प्रीति – पर्व के बंधन ऐसे प्यारे लगते हैं
जैसे नील गगन के चाँद सितारे लगते हैं
जीवन की सुख – *सुधा*
गीत का पहला – पहला छंद है
इन छंदों में प्रिय *प्रमोद* के
अंतस का आनंद है
लहरों को बाँहों में भर कर
सब कुछ संभव हो गया
एक सूत्र में बँधते कूल कगारे लगते हैं
जैसे नील गगन के चाँद सितारे लगते हैं
झूम – झूम कर बहता चलता
शीतल मंद समीर है
नेह-दान के लिए हो रहा
कितना हृदय अधीर है
यौवन की बगिया में जैसे
आया मदिर बसंत है
मन की कलियों पर अलि पंख पसारे लगते हैं
जैसे नील गगन के चाँद सितारे लगते हैं
विवाह गीत पर अंत में शुभेच्छु महेंद्र ,सहारनपुर लिखा हुआ है।
प्रिंटिंग प्रेस का नाम राघवेंद्र प्रेस ,बहराइच अंकित है
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*रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
*मोबाइल 99976 15451*