रात एक खिड़की है

रात एक खिड़की है,और
खिड़की के उस पार
कुछ ख्वाब,
आधे अधुरे
खिड़की से अंदर आती
शीतल चांदनी
मखमली सपनों की चादर फैलाती, चांदनी
हौले से मेरे सर को सहलाती ,चांदनी।
नये नये से ख्वाब दिखलाती
ये रात की खिड़की।
सुरिंदर कौर
रात एक खिड़की है,और
खिड़की के उस पार
कुछ ख्वाब,
आधे अधुरे
खिड़की से अंदर आती
शीतल चांदनी
मखमली सपनों की चादर फैलाती, चांदनी
हौले से मेरे सर को सहलाती ,चांदनी।
नये नये से ख्वाब दिखलाती
ये रात की खिड़की।
सुरिंदर कौर