रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह (कुंडलिया)
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/4a9c5846f42fe9360d421b3d843e251b_318016d0b2bba29173b5180551c4b990_600.jpg)
रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह (कुंडलिया)
————————————————–
रहती है किसकी सदा, मरती मानव-देह
एक दिवस मिट जाएगी, करो न इससे नेह
करो न इससे नेह, जिंदगी सौ वर्षों की
यही अधिकतम आयु, मिली है उत्कर्षों की
कहते रवि कविराय, समय की धारा बहती
गए त्याग सब देह, कीर्ति यश – गाथा रहती
————————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 999 761 5451