यूं हर हर क़दम-ओ-निशां पे है ज़िल्लतें
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यूं हर हर क़दम-ओ-निशां पे है ज़िल्लतें
चलते मुसाफ़िर में काश रहती मिन्नतें
डोर बंधी इन सांसों की रागों से,
फ़कत रूबरू हुए रूह की धागों से।
जिस्म की खुबियां है कुछ ऐसी ,
दिखते दिल पे नासूर जैसी….
हर मर्तबा सोचती फिरूं लम्हा-लम्हा ,,
न दुआ-ओ-दवा न हमदर्द खड़े हम तन्हा तन्ह
जिस्त की सुनवाई , न मिटे बंदिशें इन दाग़ों से
ये कमाल है गर्दिशें जब ज़ख़्म भी बएदआग़ से।
_©अलिशायरा🦋