” यह जिंदगी क्या क्या कारनामे करवा रही है
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” यह जिंदगी क्या क्या कारनामे करवा रही है
जिसकी कोई कीमत नहीं वो काम करवा रही है
जिसको पनाह दी थी मेंने अपने दिल के घर में
वही याद आहिस्ता आहिस्ता मुझको खा रही है”
कवि दीपक सरल
” यह जिंदगी क्या क्या कारनामे करवा रही है
जिसकी कोई कीमत नहीं वो काम करवा रही है
जिसको पनाह दी थी मेंने अपने दिल के घर में
वही याद आहिस्ता आहिस्ता मुझको खा रही है”
कवि दीपक सरल