यह क्या अजीब ही घोटाला है,
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यह क्या अजीब ही घोटाला है,
डाल रही , उभरती कौम का जोश, नियति के गले में वरमाला है।
खुद के जुनून को पंगु बना रहे हैं,
सफलता के अवसरों को खुद से जुदा करवा रहे हैं।
अरे कोई इनको शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी की कविता तो दिखाओ,
चलना हमारा काम है, धर्म है, कोई तो इनको समझाओ।