*यह अराजकता हमें( गीत )*
यह अराजकता हमें( गीत )
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यह अराजकता हमें, किस ओर लेकर जा रही
(1)
सॉंसें अनियमित हो रहीं, दुर्भावना बढ़ने लगी
यह चटोरी जीभ जिद के, शीर्ष तक चढ़ने लगी
मन घमंडी की तरफ से, रोज धमकी आ रही
(2)
पैर धरना दे रहे हैं, रोक तन का रास्ता
हाथ कहते हैं नहीं, मुख से हमारा वास्ता
जीभ को ही धार देखो, दाँत की है खा रही
(3)
चाबुकों का अब शुरू, करना पड़ेगा सिलसिला
देर की तो एक दिन, ढह जाएगा सारा किला
स्वाद पर पहरा लगे ,यह बात दिल को भा रही
यह अराजकता हमें, किस ओर लेकर जा रही
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451