Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Oct 2018 · 6 min read

मोबाइल महात्म्य (व्यंग्य कहानी)

मोबाइल महात्म्य
“अजी सुनते हैं।” कहती हुईं हमारी श्रीमती जी मोबाइल हाथ में पकड़े मेरे सामने आकर खड़ी हो गईं।
“अजी सुनाइए तो…” हमने भी मोबाइल से नज़रें हटा कर श्रीमती जी को प्यार से देखते हुए कहा।
“लगता है ये मोबाइल खराब हो गया है। आजकल ये अटक-अटक कर चलता है.” श्रीमती जी ने शिकायती लहजे में कहा।
“मैडम जी, ज़रा प्यार से इसे ऑन-ऑफ़ और रिस्टार्ट करके देख लीजिए। हो सकता है इसे आराम की जरूरत हो।” हमने मजाकिया लहजे में फरमाया।
“हो सकता है कि इसे भी आपकी बीमारी लग गई हो; अटक-अटक कर चलने की। बिना धक्का दिए एक कदम भी आगे बढ़ता ही नहीं। वैसे मैं इसे कई बार ऑन-ऑफ़ और रिस्टार्ट कर देख चुकी हूँ और मुझे लगता है कि इसे अब प्यार की नहीं, उपचार की जरूरत है।” श्रीमती जी ने नहले पर दहला मारा।
“टेंशन मत लो डार्लिंग। वैसे भी अभी यह मोबाइल वारंटी पीरीयड में है और हमने तो इसका बाकायदा बीमा भी कराया हुआ है। सो आज ही शाम को जाकर दिखा देंगे दुकान में।” यथार्थ की धरातल पर आते हुए मैंने कहा।
शाम को हम दोनों पति-पत्नी मोबाइल खरीदी की रसीद और बीमा के कागजात साथ में लेकर उस दूकान में जा पहुंचे, जहाँ से ग्यारह महीने पहले ही वह मोबाइल खरीदे थे।
दुकान के बाहर से ही दो-तीन लड़कों ने लपक कर हमारा ठीक वैसे ही स्वागत किया, जैसे कि लड़की वाले बरातियों का करते हैं।
हम जैसे ही अन्दर पहुंचे, एक ख़ूबसूरत लड़की ने ट्रे में लाकर ठंडा पानी पिलाया। वैसे मेरी नजरें उस लड़की को खोज रही थीं, जो 11 महीने पहले यहाँ मुझे एकदम कड़क चाय पिलाई थी। मैंने देखा, वह दूसरे ग्राहकों को चाय पिलाने में व्यस्त है। मैं अपनी बारी का इंतजार करने लगा।
खैर, श्रीमती जी के साथ हम काउंटर पर पहुंचे। वहाँ बैठे लड़के को मोबाइल में आ रही समस्या के बारे में बताया। उसने दो टूक शब्दों में कहा, “सर, आप इसके लिए सर्विस सेंटर चले जाइए। यहाँ हम सिर्फ मोबाइल बेचते हैं। सर्विसिंग का काम हम नहीं देखते।”
हमने कहा, “पर अभी तो यह मोबाइल वारंटी पीरीयड में है। पिछली बार आपने कहा था कि साल भर में कुछ भी प्रॉब्लम आए, तो उसके लिए हम यहाँ बैठे हैं।”
उसने कहा, “हाँ तो हम बैठे हैं न सर। ये कार्ड रखिए, इसमें सर्विस सेंटर का पूरा एड्रेस है। आप वहाँ चले जाइए। यदि इसमें कोई मेजर प्रॉब्लम होगी, तो आपकी मोबाइल रिप्लेस हो जाएगी।”
श्रीमती जी ने पूछा, “इसमें आप हमारी क्या मदद करेंगे ?”
उसने कहा, “सॉरी मैडम, इसमें हम आपकी कुछ भी मदद नहीं कर पाएँगे। ये सब काम सर्विस सेंटर का है।” और वह अपनी मोबाइल में मेसेज पढ़ने लगा।
श्रीमती जी उससे कुछ बातें कर रही थीं। मैंने देखा, बाजू में एक दंपत्ति को एक दूसरा सेल्समेन इसी कम्पनी की मोबाइल का बखान कर रहा था, “सर, आप इस पर आँख मूँद कर भरोसा कर सकते हैं। जबरदस्त कैमरा, मस्त बैटरी बैकअप, ए-वन साउंड क्वालिटी, इसका हर फंक्शन लाजवाब है। यही कारण है कि इसी दूकान में रोज हम लोग इसकी 20-22 सेट बेच रहे हैं। आज तक कोई कम्प्लेन नहीं आई है। यदि कुछ प्रॉब्लम आ भी जाए, तो कोई दिक्कत नहीं, हम तो बैठे ही हैं यहाँ। आप चाहें, तो इसका बीमा भी मात्र एक हजार रुपए में करा सकते हैं। यदि एक साल के भीतर कुछ प्रॉब्लम आया, गुम हो गया या टूट गया, तो बीमा कम्पनी आपको नई मोबाइल दे देगी।”
“एक्स्क्यूज मी सर।” मैंने बीच में घुसपैठ की, “हमारी इस मोबाइल की भी ग्यारह महीने पहले बीमा कराई गई थी। अब ये…”
मेरी बात बीच में ही काटते हुए उसने मैनेजर के चैंबर की ओर इशारा करते हुए कहा, “सर, प्लीज आप हमारे मैनेजर साहब से मिल लीजिए। सामने ही उनका चैंबर है। प्लीज…”
हम दोनों मैनेजर के चैम्बर की ओर चल पड़े। उसी समय एक अधेड़ वहाँ से बड़बड़ाते हुए बाहर निकल रहा था। उसकी शकल देख कर मुझे निकट भविष्य का कुछ-कुछ अंदाजा तो हो ही गया था, फिर भी दरवाजा नॉक कर हम अन्दर घुस गए।
औपचारिक अभिवादन के बाद हमने उन्हें अपनी समस्या बताते हुए बीमा की बात बताई।
“अरे ! आप भी एक्स-वे कंपनी से ही इंस्योरेंश करवाए थे ?” उन्होंने आश्चर्य से कहा।
“क्यों ? क्या हुआ ?” हमने पूछा।
“आपको नहीं पता ? ये कंपनी छः महीना पहले ही दिवालिया हो चुकी है। इस पॉलिसी पर तो अब क्लेम भी नहीं की जा सकती।” उसने कहा।
“फिर ? अब हम क्या करें ?” हमने पूछा।
“आप सर्विस सेंटर में जाकर इसे दिखा सकते हैं।” उसने टालने के अंदाज में कहा।
हम वहाँ से लौटने लगे। उस चाय वाली लड़की पर एक बार फिर मेरी नजर पड़ी। वह अन्य लोगों को तो चाय पिला रही थी, पर आश्चर्य कि आज वह हमारी तरफ आ ही नहीं रही थी। मुझे भी यूँ फ्री की चाय मांगकर पीना ठीक नहीं लगा।
खैर, हम बाहर आ गए।
सर्विस सेंटर इस दुकान से दूर किन्तु मेरे ऑफिस के नजदीक था। सो मैंने अपनी श्रीमती जी से कहा, “कल ऑफिस से लौटते समय मैं ही वहाँ चले जाऊँगा। अब घर लौटते हैं।”
अगले दिन ऑफिस में बॉस नहीं थे। मैं सेक्शन ऑफिसर को श्रीमती जी को डॉक्टर को दिखने के बहाने एक घंटे की मोहलत मांगकर सर्विस सेंटर जा पहुंचा।
मेरी पूरी बात सुनकर वह बोला, “ठीक है आप मोबाइल छोड़ दीजिए। रजिस्टर में डिटेल लिख दीजिए। हम आपको बता देंगे।”
मैंने पूछा, “कब तक बता देंगे ?”
उसने बताया, “एक हफ्ता भी लग सकता है, महीनाभर भी लग सकता है। एकदम एक्जेक्ट डेट बता पाना संभव नहीं।”
मैंने कहा, “पर यह अभी वारंटी पीरियड में है।”
उसने कहा, “भाई साहब, यहाँ आने वाला सभी मोबाइल वारंटी पीरियड वाला ही होता है।”
मैंने आग्रह किया, “भैया, क्या किसी तरह से यह कुछ जल्दी रिपेयर नहीं हो सकता ?”
उसने तपाक से कहा, “हो सकता है न। आप सामने वाली दुकान पर चले जाइए। मेरे भतीजे की है। हो सकता है कि वह तुरंत बना कर दे दे।”
मैंने कहा, “पर वह तो पैसे लेगा न।”
उसने कहा, “साहब, यदि आपको मुफ्त में चाहिए, तो अपनी बारी का इंतजार कीजिए।”
मुझे शांत देखकर वह पूछा, “भाई साहब, क्या मैं जान सकता हूँ कि ये मोबाइल कितने दिन चल चुका है ?”
अनमने भाव से मैंने बताया, “ग्यारह महीना।”
“ग्यारह महीना।” आश्चर्य से पूछा उसने।
“इसमें आश्चर्य की क्या बात है ?” मैंने पूछा।
“क्या साहब जी, आप भी अजीब सवाल करते हैं। किसी ज्ञानी पुरुष ने कहा है कि आजकल हर चौथे दिन चार चीजें पुरानी हो जाती हैं, मोबाइल, कार, टी.व्ही. और बीबी, क्योंकि पड़ोसी के पास उसकी नई मॉडल की आ जाती है। ऐसे में आपके द्वारा एक ही मोबाइल का ग्यारह महीने उपयोग के बाद रिपेयर के लिए आना आश्चर्य का विषय तो होगा ही न ?”
“देखो भाई मैं एक मिडिल क्लास आदमी हूँ। ये आठ हजार की मोबाइल मेरे लिए बड़े महत्व की है। मैं यूँ हर दूसरे-तीसरे महीने अपनी मोबाइल नहीं बदल सकता।” मैंने अपनी हकीकत बयाँ कर दी।
“हाँ भाई साहब, आप सही कह रहे हैं। ये मोबाइल भी न आजकल मिडिल क्लास लोगों के लिए गले की फाँस बन गया है। रोटी, कपड़ा और मकान से भी ज्यादा जरूरी हो गया है मोबाइल। ये सबको चाहिए। दूध पीते बच्चों से लेकर कब्र में पाँव लटकाए आदमी तक। सब चलाएँगे। अब तो पता ही नहीं चलता कि लोग इसे चला रहे हैं या ये उन्हें चला रहा है। सोते-जागते ज़रा-सी आहट हुई नहीं, कि मोबाइल यूँ चेक करते हैं, मानों हमारे बैंक अकाउंट में लाटरी के पंद्रह लाख रुपए जमा होने का मेसेज आने वाला हो। दूर के लोगों के करीब लाने के चक्कर में पता नहीं चला कि करीब के लोग कब दूर हो गए ? कितने सुखी थे तब हम, जब ये हमारे पास नहीं था। लोग आपस में प्यार से…” वह दार्शनिक अंदाज में बोलता ही जा रहा था।
अचानक मेरे दिमाग में एक आईडिया आया। मैंने पूछा, “भैया, क्या इस स्मार्टफोन के बदले मुझे कोई सिंपल फंक्शन वाला मोबाइल मिल सकता है ?”
“मिल जाना चाहिए। आप सामने वाली दुकान में पता कर लीजिए।” उसने कहा।
मैं तुरंत सामने वाली दुकान से एक्सचेंज ऑफर के तहत श्रीमती जी का स्मार्टफोन देकर एक सिंपल फंक्शन वाला मोबाइल ले लिया।
घर जाकर मैंने श्रीमती जी को अपना स्मार्टफोन दे दिया और अब मैं उस सिंपल फंक्शन वाले मोबाइल का ही उपयोग कर चैन से जी रहा हूँ।
आशा करता हूँ कि मेरा सुख-चैन देखकर श्रीमती जी भी मुझे फॉलो करेंगी और हमारी गृहस्थी की गाड़ी पंद्रह साल पहले की स्पीड से दौड़ने लगेगी।
——————————
डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

565 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
तूं कैसे नज़र अंदाज़ कर देती हों दिखा कर जाना
तूं कैसे नज़र अंदाज़ कर देती हों दिखा कर जाना
Keshav kishor Kumar
आप लोग अभी से जानवरों की सही पहचान के लिए
आप लोग अभी से जानवरों की सही पहचान के लिए
शेखर सिंह
Jo mila  nahi  wo  bhi  theek  hai.., jo  hai  mil  gaya   w
Jo mila nahi wo bhi theek hai.., jo hai mil gaya w
Rekha Rajput
दुःख बांटू तो लोग हँसते हैं ,
दुःख बांटू तो लोग हँसते हैं ,
Uttirna Dhar
*संवेदना*
*संवेदना*
Dr .Shweta sood 'Madhu'
*शादी से है जिंदगी, शादी से घर-द्वार (कुंडलिया)*
*शादी से है जिंदगी, शादी से घर-द्वार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
है शारदे मां
है शारदे मां
नेताम आर सी
‘ विरोधरस ‘---2. [ काव्य की नूतन विधा तेवरी में विरोधरस ] +रमेशराज
‘ विरोधरस ‘---2. [ काव्य की नूतन विधा तेवरी में विरोधरस ] +रमेशराज
कवि रमेशराज
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
🥀 *अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
अर्धांगनी
अर्धांगनी
पूनम कुमारी (आगाज ए दिल)
पाला जाता घरों में, वफादार है श्वान।
पाला जाता घरों में, वफादार है श्वान।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हों, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
Jogendar singh
ज़माना साथ था कल तक तो लगता था अधूरा हूँ।
ज़माना साथ था कल तक तो लगता था अधूरा हूँ।
*प्रणय प्रभात*
Jay prakash dewangan
Jay prakash dewangan
Jay Dewangan
तुम्हारे दिल में इक आशियाना खरीदा है,
तुम्हारे दिल में इक आशियाना खरीदा है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
बुंदेली हास्य मुकरियां -राना लिधौरी
बुंदेली हास्य मुकरियां -राना लिधौरी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
खुशियों की डिलीवरी
खुशियों की डिलीवरी
Dr. Pradeep Kumar Sharma
“अकेला”
“अकेला”
DrLakshman Jha Parimal
अंधेरों में अंधकार से ही रहा वास्ता...
अंधेरों में अंधकार से ही रहा वास्ता...
कवि दीपक बवेजा
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
Rashmi Sanjay
कर क्षमा सब भूल मैं छूता चरण
कर क्षमा सब भूल मैं छूता चरण
Basant Bhagawan Roy
"खुद को खुली एक किताब कर"
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
ये जीवन किसी का भी,
ये जीवन किसी का भी,
Dr. Man Mohan Krishna
बस एक कदम दूर थे
बस एक कदम दूर थे
'अशांत' शेखर
फितरत
फितरत
Mamta Rani
मैं ढूंढता हूं रातो - दिन कोई बशर मिले।
मैं ढूंढता हूं रातो - दिन कोई बशर मिले।
सत्य कुमार प्रेमी
आयेगी मौत जब
आयेगी मौत जब
Dr fauzia Naseem shad
** चीड़ के प्रसून **
** चीड़ के प्रसून **
लक्ष्मण 'बिजनौरी'
सत्य की खोज
सत्य की खोज
Akshay patel
संविधान को अपना नाम देने से ज्यादा महान तो उसको बनाने वाले थ
संविधान को अपना नाम देने से ज्यादा महान तो उसको बनाने वाले थ
SPK Sachin Lodhi
Loading...