मैं
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साहित्य की गलियों में आती
कलम थाम कर शाम निज नामकर
भावों का सागर उमड़ पड़ता
बिना विश्राम कर
शब्दों की सरिता बह आती
जाम भर कर
फिर एक नूतन सृजन को पाती
अपने नाम कर,
उन्हें सुर ताल से सजाती
लबों पर ला कर
खूबसूरत पहचान बनाती
रचना सुना-पढा़ कर
प्रसन्नता से झूम जाती में
निज कर।
-सीमा गुप्ता