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17 Feb 2017 · 1 min read

*****मैं हूँ एक ‘सुंदर’ सुमन****

**कलम चली है आज
जो अब लिखने को
किया अनुरोध किसी ने
कुछ लिखने को

**औरों के ऊपर नहीं
सिर्फ उस पर लिखने को
किया अनुरोध आज
किसी ने कुछ लिखने को

**सोच रही हूँ मैं
ऐसा कुछ क्या लिखूँ
याद रहे उसे दिया उपहार है
किसी अपने ने किसी अपने को

**भोली सूरत मन उसने कोमल है पाया
हँसी है उसकी जैसे चाँद निकल के आया

**सूरज जैसी छटा बिखेरती रहती है
चलती है जैसे मोरनी-सी कोई उपवन में
बातों में है जादू उसकी मृदुभाषी है वह, कलरव करती जैसे विहग की भाँति है वह

**कार्य में निपुण वह हर ,छंद लिख लेती है
हिंदी का तो नहीं पता ,अंग्रेजी पद घड़ लेती है

**नाम भी उसका सुंदर है मतलब भी ‘सुंदर’ है
अपने आप ही जानिए यह किसका विवरण है

**नीरू ने दिया उसका पूरा सारांश यहाँ है
पता स्वयं लगाओ रोज़ाना का मिलना है

**नहीं पता लग पाए तो कोई हर्ज नहीं है भाई
संदेश पहुँचाना था जिस तक उसको बात शीघ्र समझ है आई

**बहुत आभारी नीरू उसकी जिसने है साथ दिया
पूरा विवरण किया उस ‘सुंदर’सुमन का और एक पद निर्माण किया

**और कोई नहीं है वह मेरी कलम प्रवीण ,प्रखर
लिखती ही रहती है, नहीं थकती कभी मगर
लिखती ही रहती है, पर थकती नहीं मगर*******

Language: Hindi
Tag: कविता
242 Views

Books from डॉ. नीरू मोहन 'वागीश्वरी'

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