मैं अपने दिल में मुस्तकबिल नहीं बनाऊंगा
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मैं अपने दिल में मुस्तकबिल नहीं बनाऊंगा
जिसको भी बनाऊंगा सीधा अपना बनाऊंगा
ये चार दिन की मोहब्बतें मुझे रास नहीं आती
जिसका हाथ पकड़ूगा सात जन्म निभाऊंगा !
कवि दीपक सरल
मैं अपने दिल में मुस्तकबिल नहीं बनाऊंगा
जिसको भी बनाऊंगा सीधा अपना बनाऊंगा
ये चार दिन की मोहब्बतें मुझे रास नहीं आती
जिसका हाथ पकड़ूगा सात जन्म निभाऊंगा !
कवि दीपक सरल