मेरे खतों को अगर,तुम भी पढ़ लेते

मेरे ख़तों को अगर , तुम भी पढ़ लेते।
किसी गलतफहमी में , तुम नहीं रहते।।
मेरे खतों को अगर———————-।।
माना कि तुमको पसंद,नहीं मेरी मोहब्बत।
नाराज तुम बहुत हो, देखकर मेरी आदत।।
राज नहीं रहती बात, साथ मेरा देख लेते।
मेरे खतों को अगर———————–।।
माना कि तुम पर हमने, किये हैं बहुत जुल्म।
मगर नहीं छोड़ा है हमने, कभी अपना धर्म।।
मौज नहीं बिगड़ती यदि , नरम रुख कर लेते।
मेरे खतों को अगर————————।।
ख्वाब क्या हमारे हैं, बता दिये तुमको भी।
क्या है अरमान तुम्हारे,मालूम है हमको भी।।
महका देते फूल अगर तुम, नहीं बेरौनक होते।
मेरे खतों को अगर ————————-।।
हमने क्यों बनाया है, यहाँ यह ताजमहल।
करता है याद किसको, हमेशा हमारा दिल।।
जला देते गर चिराग, बेनूर तुम नहीं रहते।
मेरे खतों को अगर————————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
मोबाइल नम्बर- 9571070847