” मुस्कराना सीख लो “
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ग़ज़ल
पा गये गम तो भुलाना सीख लो !
दर्द में भी मुस्कराना सीख लो !!
नाव कागज़ की तिरायी हैं बहुत !
धार के उस पर जाना सीख लो !!
दोष मढ़ना तो यहाँ की रीत है !
जो घटा उसको भुलाना सीख लो !!
वक्त हरकारा ख़ुशी जो बाँटता ,
ख्वाब अपना खुद सजाना सीख लो !!
हार कर बैठे नहीं खामोश हो !
नाच औरों को नचाना सीख लो !!
जो गया वह लौटकर आता नहीं !
हाथ जो अवसर भुनाना सीख लो !!
प्रेम में एकात्म होना हो बिरज !
आँख से मोती गिराना सीख लो !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )