*मुसीबत है फूफा जी का थानेदार बनना【हास्य-व्यंग्य 】*
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मुसीबत है फूफा जी का थानेदार बनना【हास्य-व्यंग्य 】
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प्रारंभ में तो कलुआ को असीमित खुशी हुई कि उसके फूफा जी थानेदार बन कर उसके शहर में स्थानांतरित होकर आ गए हैं । जैसे ही खबर मिली ,सबसे पहले उसने मोहल्ले के व्हाट्सएप समूह में “शुभ समाचार” शीर्षक लिखकर फूफा जी के थानेदार बनने की सूचना फैला दी । उसके बाद मोहल्ले-वालों की जो प्रतिक्रिया आई ,वह अत्यंत उत्साहवर्धक थी ।
बीस मिनट बाद ही पड़ोस के आदित्य जी आधा किलो जलेबी लिए हुए कलुआ के घर पर पधार गए । जिन्होंने आज तक एक चम्मच चीनी भी किसी को न खिलाई हो ,उसके हाथों से जलेबी की थैलिया लेते समय कलुआ भाव-विभोर हो उठा ।
“भाई साहब ! खुशी के अवसर पर जलेबियाँ स्वीकार कीजिए ! जैसे आपके फूफा जी ,वैसे ही हमारे फूफा जी । आपकी खुशी हमारी खुशी है ।”-आदित्य जी की बातों में जलेबी से ज्यादा मिठास टपक रही थी । कलुआ को अफसोस भी हुआ कि मोहल्ले वालों ने आदित्य जी की छवि एक लोभी और झगड़ालू व्यक्ति की क्यों बना रखी है जबकि वास्तव में तो यह देवता हैं ।
खैर ,आदित्य जी को चाय पिला कर दरवाजे से विदा करके कलुआ ने कुर्सी पर बैठ कर आराम से साँस ली ही थी कि एक अन्य पड़ोसी विपुल बाबू भी आधा किलो जलेबी लेकर घर में पधार गए । कलुआ अभी तक यही सोच रहा था कि आधा किलो जलेबी कैसे निबटेगी ? अब आधा किलो और आ गई तो उसकी समस्या बढ़ गई ।
खैर ,विपुल जी को धन्यवाद कहते हुए उसने जलेबियाँ स्वीकार करीं। “जैसे आपके फूफा जी ,वैसे ही हमारे फूफा जी”- यही शब्द विपुल बाबू ने भी कहे।
शाम होते-होते पंद्रह-बीस किलो मिठाई जिसमें बर्फी, रसगुल्ला ,गुलाब जामुन आदि सभी प्रकार की मिठाईयाँ शामिल थीं, कलुआ के घर पर एकत्र हो गईं। पूरा घर मिठाई की सुगंध से भर उठा । कलुआ की प्रसन्नता का ठिकाना न था। जीवन में कभी इतनी शुभकामनाएँ और बधाइयाँ उसे प्राप्त नहीं हुई थीं।
जब बिस्तर पर सोने के लिए कलुआ लेटा ,तो कुछ ही क्षणों में वह सुखद स्वप्न की गतिविधियों में गोते लगाने लगा । उसे महसूस हो रहा था कि वह बादलों के ऊपर कदम बढ़ाता हुआ चला जा रहा है और चारों तरफ “कलुआ जी बधाई …कलुआ जी बधाई” के नारे गूँज रहे हैं । सब उसे फूल और गुलदस्ते भेंट कर रहे हैं तथा मिठाई के ढेर कलुआ के चारों तरफ लगे हुए हैं । रात-भर स्वप्नों का यह सुखद दौर चलता रहा।
मुसीबत तो अगले दिन से शुरू हुई। सबसे पहले आदित्य जी ही अपने लड़के को साथ में लेकर आए और कहने लगे “फूफा जी के रहते हुए सिपाही की यह मजाल कि हमारे लड़के को ही सड़क पर से कॉलर पकड़ कर हटा दिया ! ”
कलुआ की समझ में कुछ नहीं आया। अतः उसने पूछा “भाई साहब ! हुआ क्या ? कुछ तो बताइए ? ”
आदित्य जी गुस्से में आग बबूला थे। कहने लगे “होना क्या था ? रोज की तरह हमारा लड़का ठेला लगाए हुए था कि अचानक कुछ पुलिस वाले आए और अतिक्रमण के नाम पर हमारे लड़के का ठेला हटवा दिया । कहने लगे कि नये थानेदार साहब का आर्डर है । मैं भी पहुँच गया था । मैंने अपने लड़के की तरफ से पुलिस वालों को बताया कि थानेदार साहब हमारे फूफा जी हैं …।
अब इस बिंदु पर कलुआ ने हकलाते हुए कहा पूछा “आपके फूफा जी ? क्या मतलब ? ”
इस पर आदित्य जी लगभग चीखते-चिल्लाते हुए बोले “जब जलेबी खा रहे थे ,तब तो आप ने एतराज नहीं किया कि हमारे फूफा जी और आपके फूफा जी अलग-अलग हैं ? अब जब जरा-सा काम पड़ गया ,तब आप पूछ रहे हैं कि हमारे फूफा जी कहाँ से हो गए ? आपको शर्म आनी चाहिए ,इस तरह रंग बदलते हुए ।”
बाहरहाल आदित्य जी तमाम झिड़कियाँ सुना कर कलुआ के घर से चले गए और अंत में यहाँ तक कह गए “हमारी जलेबियाँ वापस कर देना । तुम्हारे फूफा जी तुम्हें मुबारक ! ”
कलुआ के घर में मानो शोक का वातावरण छा गया हो ! फूफा जी के थानेदार बनकर आने की खुशी अब काफूर हो चुकी थी । पड़ोसी से झगड़ा हो चुका था । जिस तरह एक दिन पहले बधाइयों का ताँता लगा था ,अगले दिन आज उसी तरह शिकायतों का अंबार लग गया ।
कलुआ से शिकायतें सँभाली नहीं जा रही थीं। कोई कह रहा था कि हमारे शस्त्र के लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं हुआ ! फूफा जी के रहते हुए इतनी देर क्यों लग रही है ? कोई कह रहा था कि हमारे घर पिछले साल जो चोरी हुई थी ,उसका माल अभी तक बरामद नहीं हो पाया है जबकि अब तो फूफा जी थानेदार हैं । किसी का कहना था कि उनके दफ्तर का कोई सहकर्मी उनसे बदतमीजी करता है , अतः उसे सबक सिखाते हुए थाने में बंद करवाना ही होगा वरना थानेदार साहब हमारे काहे के फूफा जी ?
दुखी होकर कलुआ ने निश्चय किया कि वह अपने मकान पर ताला लगा कर चार-छह दिन के लिए कहीं बाहर चला जाए , ताकि फूफा जी के थानेदार बनने की खबर ठंडी पड़ जाए । वह उस मनहूस घड़ी को रह-रह कर कोस रहा था जब उसने फूफाजी के थानेदार बनने की खबर पूरे मोहल्ले में खुशी के साथ व्हाट्सएप पर प्रसारित की थी। कान पकड़ लिए ,कभी किसी रिश्तेदार के उच्च-अधिकारी बनकर शहर में आने की खबर किसी को कानों कान नहीं देनी चाहिए।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451