मुझे कृष्ण बनना है मां

मुझे कृष्ण बनना है मां,
क्यों भला??
बस स्टेज पर चढ़ नाचना है मुझे।
ऐसे कैसे सीखें बिना?
सीख रही हैं न पूजा ,सुमन और पुष्पा,
मैं भी सीख लूंगी।
मां ने बचपन की ज़िद समझी और
बोली ,”ठीक है ,सीख लेना”।
अगले दिन से सीखने लगी मैं
स्कूल में भारतनाट्यम।
फिर मास्टर जी ने घुंघरू लाने को कहा।
फिर मां ने कहा ,मिल जायेगें।
मां,कब लाओगी तुम घुंघरू?
रोज़ डांटते हैं मास्टर जी।
दो हफ्ते बीत गये ज़िद करते
तो मैंने पूछना ही छोड़ दिया।
मां को उदासी समझ आती थी मेरी।
एक दिन स्कूल से लौटी तो
धीरे से मां ने हाथ में पकड़ाए थे घुंघरू।
लेकिन ये क्या मां?
ये कोई घूंघरू है?
बाजार से क्यों नहीं लाई?
पिता की सहमति नहीं थी मेरे डांस सीखने में
एक मां की विवशता अब समझ आई मुझे,
मां ने अपने पुराने कमीज के कफ उतार कर
उस पर हाथ से टांक दिये थे पांच पांच घुंघरू,
जो उसने हमारे कुत्ते के पुराने पटे से उतारे थे।
और लगा दिए थे पीछे हुक।
समझाया था मुझे, बिटिया वो बाज़ार वाले
घुंघरू तो बडे़ थे
सरक जाते नीचे तेरे पैर से।
भोला मन मान गया,और घुंघरू बांध आंगन में
नाचने लगा।
फिर स्टेज पर भी जाना हुआ।
पूरे चेहरे ,हाथ और पांव में
नील लगा दिया
श्याम रंग में रंग गयी थी मैं
पीली पोशाक में।
पूजा बनी थी मेरी राधा
गीत था,
वृंदावन का कृष्ण कन्हैया,सब की आंखों का तारा।
खूब तालियां बजीं थी
गीत के बाद मां के सीने से झट जा लगी थी
मैं
खुशी के मारे ,मां बेटी खूब रोते थे।
काश कोई मोबाइल होता तो वो तस्वीर भी मैं दिखाती ,
जो मेरे दिल के आईने में आज मुझे बाबू नजर आ रही है।
सुरिंदर कौर