मुक्तक
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शहरों के पार्क में न तो जुल्फों की छाँव में
मिलता अज़ब सुक़ून है आकर के गाँव में
लगता है कोई राग सुनाती हैं कोयलें
पाजेब जब छमकते हैं गोरी के पाँव में
प्रीतम श्रावस्तवी
शहरों के पार्क में न तो जुल्फों की छाँव में
मिलता अज़ब सुक़ून है आकर के गाँव में
लगता है कोई राग सुनाती हैं कोयलें
पाजेब जब छमकते हैं गोरी के पाँव में
प्रीतम श्रावस्तवी