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15 Mar 2019 · 1 min read

मुक्तक

ज़िन्दगानी के भी कैसे-कैसे मंज़र हो गए,
खुशियों से तो अब हमारे दर्द बेहतर हो गए,
एक क़तरे भर की आँखों में थी जिनकी हैसियत,
अश्क पलकों से निकलते वो समन्दर हो गए,

Language: Hindi
1 Like · 296 Views

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