माल्यार्पण (हास्य व्यंग)
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माल्यार्पण (हास्य व्यंग)
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फूलों की माला का विशेष महत्व होता है । विभिन्न प्रकार के फूलों से विभिन्न प्रकार की मालाएं बनती हैं । सबसे ज्यादा खुशबूदार और आकर्षक गुलाब के फूलों की माला मानी जाती है। लेकिन टिकाऊ गेंदे के फूलों की माला कहलाती है। गेंदे के मोटे- मोटे फूलों की माला प्रायः नेता लोग पहनते हैं। फूलों की मालाओं के बगैर नेताओं का कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं होता।
ज्यादातर मामलों में जिसको फूलों की माला पहनाई जाती है, फूलमालाओं का इंतजाम भी उसी को करना होता है यानि जिस क्वालिटी की जितनी मालाएं पहननी हों, चमचे के द्वारा इंतजाम करके एक थैली में एक तरफ रखवा दो। जो बड़े स्तर के नेता होते हैं ,उनका फूलों का हार अपने आप में ऐसा होता है जैसे एक बड़ा कमरा। छोटा नेता प्लास्टिक की कुर्सी के बराबर फूल माला पहन सकता है लेकिन बड़ा नेता एक बड़े सोफा सेट के आकार की फूल माला पहनता है। ऐसी फूल मालाएं 12 फुट लंबाई की होती हैं। इस प्रकार की बड़ी फूल माला में पाँच लोग आसानी से फिट हो जाते हैं। भागमभाग होती है। भगदड़ मचती है ।एक बार तो फूलों की बड़ी माला केवल इस चक्कर में टूट गई कि उसमें पांच के स्थान पर नौ लोग अपने को फिट करना चाहते थे। जिसका चेहरा किसी भी प्रकार से फूलों की बड़ी माला के किसी भी कोने में फिट हो जाता है, वह बड़ा भाग्यशाली माना जाता है।
गेंदे के फूलों की मालाएं मंच पर सभी को पहनाई जाती हैं, लेकिन कुछ खास नेता होते हैं । उनको दो या तीन या चार या पाँच भी पहनाई जाती हैं। जिसके गले में जितनी ज्यादा फूलमालाएं पड़ती हैं, वह उतना ही बड़ा नेता माना जाता है। कई बार आयोजक माल्यार्पण के कार्यक्रम में पैसों की बचत कर जाते हैं ,लेकिन यह उन्हें बहुत भारी पड़ती है । नेता रुष्ट हो जाता है , अगर उसे सस्ती वाली फूल माला पहनाई जाती है। तब उसका पारा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है । कहता है हमारी इज्जत करना नहीं जानते । हम इतने बड़े नेता हैं और तुमने हमें तीन रुपल्ली की फूलमाला पहना दी। कम से कम बीस रुपये की फूलमाला तो लाते । मंच पर बैठना और फूलों की माला पहनना परम सौभाग्य का विषय होता है। व्यक्ति का जीवन धन्य हो जाता है ।
फूलों की माला पहनने के साथ-साथ फूलों की माला पहनाने का भी अपना महत्व होता है। संस्थाओं और संगठनों के कार्यक्रमों में बाकायदा एक लिस्ट रहती है जिसमें संचालन कर्ता को यह बताना पड़ता है कि अमुक सज्जन को अमुक सज्जन फूलों की माला पहनाने आएंगे । इस प्रकार दोनों धन्य हो जाते हैं ।
एक बार एक समारोह में मंच पर बैठे हुए व्यक्तियों को फूलों की माला बहुत से लोगों ने पहनाई। जिस – जिस ने फूलों की माला पहनाई, उसका नाम लिया गया। जिस जिस को पहनाई गई, उसका भी नाम लिया गया । दोनों का जीवन धन्य हो गया। जब माला पहनाने का काम निपटा और मालाएं पहनाने के बाद मेज पर एक कोने में रख दी गईं, तब श्रोताओं में से एक सज्जन उठे और उन्होंने आक्रोश के साथ अपना असंतोष व्यक्त किया कि संगठन में उनका महत्वपूर्ण स्थान है लेकिन उसके बाद भी उनके कर- कमलों से एक भी माला किसी के गले में नहीं पहनवाई गई । बात यहीं तक सीमित रह जाती है तो ठीक था लेकिन उन्होंने संचालक महोदय पर आरोप लगा दिया कि आप मुझसे जलते हैं और इस कारण आपने मुझसे फूलमाला नहीं पहनाई। संचालक महोदय को भी गुस्सा आ गया । कहने लगे तुम्हारी औकात ही क्या है, जो तुमसे हम किसी को फूल माला पहनवाते? बस ! शांति सम्मेलन महाभारत के कुरुक्षेत्र में परिवर्तित हो गया । किसी तरह लोगों ने बीच-बचाव किया । मामला रफा-दफा हुआ और एक फूल माला जो कि पहले ही पहनाई जा चुकी थी , उसे उठाकर असंतुष्ट कार्यकर्ता के कर- कमलों में दिया और उसने अपने कर- कमलों से एक मंचासीन नेता को वह फूल माला पहनाई ।और इस प्रकार कार्यकर्ता धन्य हुआ और मामला शांत हुआ।
फूल मालाएं शादी के अवसर पर भी पहनाई जाती हैं । इसको वरमाला कहते हैं। दुल्हन दूल्हे को फूलों की माला पहनाती है। उसके बाद दूल्हा,दुल्हन को फूल माला पहनाता है। कई लोग इस अवसर पर मजाक में अपने-अपने पक्ष के दूल्हा अथवा दुल्हन को गोद में ऊँचा उठा लेते हैं ताकि दूसरा पक्ष उसको फूलमाला न पहना पाए । कई बार ऐसे भी चित्र सामने आते हैं जिसमें बिना देखे दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे को फूल माला पहना देते हैं। पता चला कि फूल माला सिर के ऊपर से डाली और कंधों से होती हुई नीचे जमीन पर आ गई । सारा कार्यक्रम हास्यरस में बदल जाता है ।
फूलों की माला का सबसे मुख्य उपयोग देवता की मूर्ति पर चढ़ाने में होता है। उससे पूरा दिन मंदिर महकता रहता है। सजावट के लिए फूलों की मालाओं का बहुत बड़े स्तर पर उपयोग किया जाता है । वह हजारों रुपयों से लेकर लाखों रुपए तक की सजावट कहलाती है। कई ऐसे फूल होते हैं जो बहुत कीमती होते हैं। ऐसे फूलों से सजावट जब की जाती है तो वह गुलदस्तों के रूप में होती है और उसका अपना विशेष महत्व होता है । जब कोई वीआईपी व्यक्ति आता है तब उसके रास्ते पर फूलों की पंखुड़ियां बिखेरी जाती हैं और उस पर चलते हुए वह व्यक्ति जब जाता है तब उसका दिल प्रसन्न हो जाता है।
फूलों के हारों का उपयोग जन्म से लेकर मृत्यु तक होता है । अंतिम यात्रा में अर्थी फूलों से ही सजती है और इस प्रकार व्यक्ति का जीवन फूलों के हारों के साथ चलते हुए अपनी आखरी मंजिल पर जाकर समाप्त हो जाता है ।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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