*माँ कटार-संग लाई हैं* *(घनाक्षरी : सिंह विलोकित छंद )*
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/b45c0eed82cb4fe450bbe751c0c1c234_9b51eb2674708a054613e8d20b0e7128_600.jpg)
माँ कटार-संग लाई हैं (घनाक्षरी : सिंह विलोकित छंद )
_________________________
आई हैं तैयार हो के सिंह पे सवार हो के
करती प्रहार माँ कटार-संग लाई हैं
लाई हैं अचूक शक्ति दानव-संहार हेतु
देवी की भुजाऍं यह अष्ट-वरदाई हैं
वरदाई हैं भरेंगी भारत में नव-नाद
सिंहनाद-जैसी ध्वनियाँ ही आज छाई हैं
छाई हैं दसों दिशाऍं आज वीर भावना में
घड़ियाँ पराजय की शत्रुओं की आई हैं
—————————————-
रचयिता:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451