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17 May 2023 · 1 min read

मतलबी किरदार

एक प्यारा सा रिश्ता,
चाहता था,
तुमने बिगाड़ दी।
लगी थी जो विश्वास की फसल,
उसे उजाड़ दी।

क्यों ! समझती हो खुद को,
तुम रिश्तों के ठेकेदार हो।
सच बोल रहा हूं मैं,
तुम केवल मतलबी किरदार हो।

हां! ज़रूर मैंने , तुम्हारे साथ,
कुछ लम्हें जरूर गुज़ार दी,
मगर तुमने भी कोसा नसीब को,
और गालियां हज़ार दी।

अब जो गुज़ार दी, सो गुज़ार दी,
मगर तुमने भी तब तक हीं बेशुमार प्यार दी,
जबतलक मेरे से रहा काम ,
उसके बाद पूराने कपड़े के तरह उतार दी।

मैं लोगों को पहचानना,
शायद ही जानता था।
जो जो गले लगते थे हमारे,
उनको भी अपना हीं मानता था।

खैर छोड़ो! अब मैंने सीख लिया,
लोगों को कैसे पहचानना है?
तुम्हारे साथ हुई अनुभवों से ही पता चला,
किसे गले लगाना है और किसे उतारना है।

और हां मुझे करना है तय अभी
फासला दूर का,पकड़ लेना साथ ,
मुझसे ज्यादा परवाह करने वाला
किसी हुजूर का।

क्योंकि जमाने में खबर फैल गई है
कि अभी तुम तक बच्ची हो,
वह मैं ही जानता हूं
तुम कितनी सच्ची और अच्छी हो।

Tag: Poem
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